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पञ्चमः परिच्छेदः धीरोदात्तादिनेतृणामिति भेदास्तु षोडश । परमध्यावरत्वेन त्रित्वमेष्वेव 'बोधितम् ॥३२८।। नायका भेदतस्त्वष्टचत्वारिंशदितीरिताः । विदूषको विट: पीठमर्दो नेतृसहायकाः ॥३२२।। नेतुर्विदूषको हासकारी चारुप्रसङ्गतः । नायकस्वान्तरागानुकलविद्यो विटो मतः ॥३३०॥ मनागूनगुणो नेतुः कार्ये दक्षोऽन्तिमो मतः।। लुब्धधीरोद्धतस्तब्धाः पापिष्ठाः प्रतिनायकाः॥३३१॥ सत्त्वजा योवने पुंसां शोभाद्या ह्यष्टधा गुणाः। गाम्भीर्य स्थैर्यमाधर्ये तेजः शोभाविलासनम् ॥३३२।। औदार्य ललितं चेति तेषां लक्षणमुच्यते । गाम्भीर्य या प्रभावेनाविकृतिः क्षोभणेऽपि च । कार्यादचलनं स्थैर्य विघ्ने महति सत्यपि ॥३३३।।
नायकोंके अन्य भेद
धीरोदात्त, धोरललित आदि नायकोंके सोलह भेद हैं अर्थात् मूल चार भेद और प्रत्येकके दक्षिण, शठ, धृष्ट आदिको अपेक्षा चार-चार भेद; इस प्रकार कुल ४४४ = १६ भेद है। ये सोलह प्रकारके नायक उत्तम, मध्यम और अधमके भेदसे तीन-तीन प्रकारके होते हैं ॥३२८॥
इस प्रकार नायकोंके १६४ ३ = ४८ अड़तालीस भेद माने गये हैं और इनके सहायक विदूषक, विट और पीठमर्द माने गये हैं । ३२९॥ विदूषक और विट
सुन्दर प्रसङ्गसे नायकको हंसाने तथा प्रसन्न रखनेवालेको विदूषक और नायकके भोतरी प्रेम तथा अनुकूलताको जाननेवालेको विट कहते हैं ।।३३०।। पीठमदं और प्रतिनायक
नायकसे कुछ कम गुणवाला तथा कार्यमें जो कुशल हो, उसे पीठमर्द कहते हैं । लोभी, धोर, उद्दण्ड, स्तब्ध और महापापी प्रतिनायक होते हैं ॥३३१॥ सत्त्वोत्पन्न युवावस्थाके गुण-सात्त्विक गुण
पुरुषोंके युवावस्थामें सत्त्वसे उत्पन्न गम्भीरता, स्थिरता, मधुरता, तेज, शोभा, विलास, औदार्य और लालित्य ये आठ गुण होते हैं ॥३३२॥ गम्भीरता
पूर्व पद्यमें प्रतिपादित गुणोंमें उदारता और लालित्य नहीं आये थे, जिनका
१. चोदितम्-क-ख। २. प्रभवेनाऽविकृति:-ख ।
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