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________________ २६६ अलंकारचिन्तामणिः [५।१५०मापेत्यन्वय एव वाक्यानीति'स्थितिः । एकार्थविश्रान्तान्यनेकानि वाक्यानि महावाक्यम् । उदाहरणम्चन्द्रप्रभं नौमि यदङ्गकान्ति ज्योत्स्नेति मत्वा द्रवतीन्दुकान्तः । चकोरयूथं पिबति स्फुटन्ति कृष्णेऽपि पक्षे किल कैरवाणि ॥१५०।। वाच्यलक्ष्यव्यङ्ग्यभेदेन त्रिविधोऽर्थः । वाचकलक्षकव्यञ्जकत्वेन शब्दानां त्रैविध्यात् । व्यङ्ग्यार्थ एव तात्पर्यार्थः। न पुनश्चतुर्थः । शब्दवृत्तयस्त्रिधा अभिधालक्षणाव्यञ्जनाभेदात् । लक्षणाविशेष एव गौणवृत्तिः। तयोः संबन्धमूलत्वाविशेषात् । गङ्गा मुख्यस्तैटो लक्ष्यो व्यंग्यः शोतलादिकम् । सिंहो माणवक इति केचिदिच्छन्ति । अत्र तु मुख्यो वाच्य एव । सिंहो माणवक इति सादृश्यसंबन्धविशिष्ट माणवकप्रतीतेगौणो लक्ष्य एव । सङ्केतितार्थविषया शब्दव्यापतिरभिधा । सा रूढादिभेदात् सूक्ता। वाच्यार्थघटनेन तत्संबन्धिनि समा पाया' के साथ अन्वित होनेपर ही वाक्य बनता है। एक अर्थमें विश्रान्त होनेवाले अनेक वाक्योंको महावाक्य कहते हैं । यथा जिस चन्द्रप्रभ भगवान्के शरीरको कान्तिको चन्द्रिका मानकर चन्द्रकान्तमणि द्रवित होने लगती है। चन्द्रिका मानकर ही चकोरका झुण्ड उस कान्तिका पान करने लगता है तथा उसे चन्द्रकिरण मानकर ही कैरव विकसित हो जाते हैं । उस चन्द्रप्रभ भगवान्को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१५०॥ अर्थप्रकार एवं वृत्तियोंके स्वरूप वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्यके भेदसे अर्थ तीन प्रकारका होता है, क्योंकि वाचक, लक्षक और व्यंजकके भेदसे शब्द तीन प्रकारके होते हैं । व्यंग्यार्थको ही तात्पर्यार्थ कहते हैं । अतः चार प्रकारके अर्थ नहीं हैं। अभिधा, लक्षणा और व्यंजनाके भेदसे तीन प्रकारको शब्द-वृत्तियाँ हैं। गौणवृत्ति लक्षणा ही एक प्रकारको है, क्योंकि वे दोनों ही सम्बन्धमूलक हैं। गंगा मुख्य है, तट लक्ष्य है और शीतलादि व्यंग्य है। कोई "सिंहो माणवकः' का उदाहरण देते हैं, उसमें मुख्य वाच्य अर्थ ही है। "सिंहो माणवकः' इस पदमें सादृश्य सम्बन्ध से युक्त प्रतीति होनेसे जो गौण है वह लक्ष्य ही है। संकेतित अर्थका बोध करनेवाली शब्द-व्यापृति-व्यापारको अभिधा कहते हैं। वह रूढ़ इत्यादिके भेदसे अनेक प्रकारकी कहो गयी है । वाच्य अर्थके अन्वित न होनेसे वाच्यार्थ सम्बन्धीमें २. वाक्यार्थविप्रान्त-ख। ३. व्यङ्गयत्वभेदेन--ख। १. स्थितं--ख । लक्ष्यो -ख । ४. तटोप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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