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________________ -१५३ ] - पञ्चमः परिच्छेदः २६७ रोपितशब्दव्यापारो लक्षणा। सा द्विधासादृश्यहेतुका' संबन्धान्तहेतुका चेति । संबन्धान्तहेतुकापि द्विधा जहद्वाच्या अजहद्वाच्या चेति सादृश्यहेतुका द्विधा । सारोपा साध्यवसाया चेति । एवं लक्षणा चतुर्धा । तत्र जहल्लक्षणा यथा उत्पन्ने पुरुदेवेऽत्र त्रिलोकीरक्षणक्षमे । नत्यद्गायज्जगज्जातं रोमहर्षणजम्भितम् ।।१५१।। जगतोऽचेतनस्य नाट्यगानरोमाञ्चासंभवाद् वाच्यस्याभावः। अजहल्लक्षणा यथा पुरोः समवसृत्यन्तराश्रितं सिंहविष्टरम् । अलंचक्रुः किरीटानि नानारत्नमरी चिभिः ॥१५२॥ अत्र अलंकारसिद्धये किरीटैराश्रयभूता इन्द्रादयो लक्ष्यन्ते । विषयविषयिणोरुक्तयोरभेदनिश्चितिरारोपः । सारोपलक्षणा यथा चक्रिकण्ठीरवः शौर्यसंपदान्वितविग्रहः । परिपन्थिमहादन्तिनिवहभ्रमणं व्यधात् ॥१५३॥ अच्छी तरहसे आरोपित शब्द व्यापारको लक्षणा कहते हैं । यह दो प्रकारको है-सादृश्य हेतुका और सम्बन्धान्तरहेतुका। सम्बन्धान्तरहेतुका-सादृश्य सम्बन्धसे अतिरिक्त कारणवाली लक्षणा भी दो प्रकारको है-(१) जहद्वाच्या-अपने वाच्यार्थको छोड़नेवाली, (२) अजहद्वाच्या--अन्य अर्थ लेते हुए भी अपने वाच्यार्थको नहीं छोड़नेवाली । सादृश्य हेतुवाली लक्षणाके भी दो भेद है-(१) सारोपा और (२) साध्यवसाया। इस प्रकार लक्षणा चार प्रकारकी होती है। जहल्लक्षणाका उदाहरण यहाँ तीनों लोकोंकी रक्षा करने में समर्थ पुरुदेवके उत्पन्न होनेपर रोमांच इत्यादि से बढ़ा हुआ संसार नाचने-गाने लगा ॥१५॥ यहां अचेतन संसार का अभिनय, गान, रोमांच इत्यादि सर्वथा असम्भव होनेसे वाच्यका अभाव है। अजहल्लक्षणाका उदाहरण-- पुरुदेवके समवसरणमें सिंहासनपर आरूढ़ होनेपर उन्हें नाना रत्नोंकी कान्तिसे मुकुटोंने विभूषित किया ॥१५२॥ यहां अलंकारकी सिद्धिके लिए किरीट पदसे उनके आश्रयभूत इन्द्रादिकको प्रतीति लक्षणाके द्वारा होती है। पूर्व कथित विषय और विषयोके अभेद निश्चयको आरोप कहते हैं । आरोपके साथ रहनेवाली लक्षणाको सारोपा कहा जाता है । यथाशूरता तथा सम्पत्तिसे युक्त शरीरवाले चक्रवर्तीरूपी सिंहने शत्रुरूपी गजराजोंके समूहको विचलित कर दिया ॥१५३॥ १. हेतुका-स्थाने खप्रती हेतुता। २. अलंकारद्वये किरीटैराश्रयभूता -ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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