SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना अत्र एकाद्यङ्क-क्रमेण पठिते सति अजितसेनेन कृतचिन्तामणिः भरतयशसीति गम्यते । चक्रबन्धके उदाहरणमें भी अजितसेनका नामोल्लेख आया है। अतः यह निर्विवाद है कि इस ग्रन्थके रचयिता आचार्य अजितसेन हैं। जैन साहित्यमें अजितसेन नामके आठ आचार्योंका उल्लेख प्राप्त होता है। श्रवणबेलगोलके शिलालेख अड़तीस, सड़सठ, और चौवनमें अजितसेनका निर्देश आया है। मैसूर प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारकोंमें अजितसेनके सम्बन्धमें निम्नलिखित तथ्य उपलब्ध होते हैं। "न. ४०, सन् १०७७ मानस्तम्भपर-चट्टलदेवीने कमलभद्र पण्डितदेवके चरण धोकर भूमि दी। पंचकूट जिनमन्दिरके लिए विक्रमसान्तरदेवने अजितसेन पण्डितदेवके चरण धोकर भूमि दी। "न. ३, सन् १०९० के लगभग पोप्पग्राम--इस स्मारकको अपने गुरु मुनि वादीभसिंह अजितसेनकी स्मृतिमें महाराज मारसान्तरवंशीने स्थापित किया। यह जैन आगमरूप समुद्रकी वृद्धि में चन्द्रमासमान था।" "न. १९२, सन् ११०३-चालुक्य त्रिभुवनमल्लके राज्यमें उग्रवंशी अजबलिसान्तरने पोम्बुच्चमें पंचवस्ति बनवायी। उसीके सामने अनन्दूरमें चट्टलदेवी और त्रिभुवनमल्ल-सान्तरदेवने एक पाषाणकी वस्ति द्रविलसंघ अरुंगलान्वयके अजितसेन पण्डितदेव-वादिघरट्टके नामसे बनवायी।" __ "नं. ८३, सन् १११७ ई.-चामराज नगरमें पार्श्वनाथ वस्तिमैं एक पाषाणपर । जब द्वारावती (हलेबीडु) में वीरगंग विष्णुवर्द्धन विट्टिग होयसलदेव राज्य करते थे तब उनके युद्ध और शान्तिके महामन्त्री चाव और अरसिकव्वेपुत्र पुनीश राजदण्डाधीश था। यह श्री अजितमुनियतिका शिष्य जैन श्रावक था। तथा यह इतना वीर था कि इसने टोडको भयवान किया, कौंगोंको भगाया, पल्लवोंका वध किया, मलयालोंका नाश किया, कालराजको कम्पायमान किया तथा नीलगिरिके ऊपर जाकर विजय की पताका फहरायी।'' "नं. १०३, सन् ११२०, सुकदरे ग्राममें लक्कम्म मन्दिरके सामने पाषाणपर ।-माता एचलेके पुत्र अत्रेयगोत्री जक्किसेट्टिने अपने सुकदरे ग्राममें एक जिनालय बनवाया व उसके लिए एक सरोवर भी बनवाया, तथा दयापालदेवके चरण धो कर भूमि दान की। इसके गुरु अजितमुनियति थे जो द्रविलसंघमें हुए जिसमें समन्तभद्र; भट्टाकलंक; हेमसेन; वादिराज; व मल्लिसेण मलधारी हुए।" "नं. ३७, सन् ११४७, तोरणवागिलुके उत्तर खम्भेपर ।-जगदेकमल्लके १. अलंकारचिन्तामणि, पृ. सं. ६४, २/१८२ के आगेका गद्य । २. मद्रास व मैसूर प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक, पृ. ३२० । ३. वही, पृ. सं. २६१ । ४. वही, पृ. सं. ३२५ । ५. वही, पृ. सं. १८६। ६. वही, पृ. सं. २०२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy