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अलंकारचिन्तामणि
३. कलहान्तरा। ४. खण्डिता। ५. विप्रलब्धा। ६. प्रोषितभर्तका। ७. विरहोत्कण्ठिता। ८. अभिसारिका।
इन सभी नायिकाओंके स्वरूपवर्णनके अनन्तर दतियाँ, स्त्रियोंके सात्त्विकभाव, हाव-भाव, स्त्रियों के स्वाभाविक अलंकार, ललित, किलकिचित् विभ्रम, कुट्टमित, मोट्टायित, बिब्बोक, विच्छित्ति, और व्याहृतके लक्षण एवं उदाहरण आये हैं।
__इस पंचम परिच्छेदमें काव्यशास्त्रसम्बन्धी सभी आवश्यक चर्चाएँ समाविष्ट हैं । वक्रोक्ति अलंकारका कथन इस ग्रन्थमें दो सन्दर्भो में आया है-तृतीय परिच्छेद और चतुर्थ परिच्छेद में। इसमें पुनरुक्तिकी शंका नहीं की जा सकती। यतः वक्रोक्ति शब्दशक्तिमूलक और अर्थशक्तिमूलक होता है । तृतीय परिच्छेद में शब्दशक्तिमूलक और चतुर्थ परिच्छेदमें अर्थशक्तिमूलक वक्रोक्ति निरूपित है।
___ इस अलंकारग्रन्थमें नाटकसम्बन्धी और ध्वनिसम्बन्धी विषयोंको छोड़ शेष सभी अलंकारशास्त्र-सम्बन्धी विषयोंका कथन किया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ दो भागोंमें विभक्त किया जा सकता है-लक्षण और लक्ष्यउदाहरण-लक्षण-सम्बन्धी सभी पद्य अजितसेनके द्वारा विरचित हैं। और लक्ष्यसम्बन्धी श्लोक महापुराण, हरिवंशपुराण, आत्मानुशासन, जिनशतक, धर्मशर्माभ्युदय एवं मुनिसुव्रतकाव्य आदि ग्रन्थोंसे लिये गये हैं। ग्रन्थकारने स्वयं निम्नलिखित पद्यमें उक्त तथ्यको स्वीकृत किया है
अत्रोदाहरणं पूर्वपुराणादिसुभाषितम् । पुण्यपुरुषसंस्तोत्रपरं स्तोत्रमिदं ततः ॥
अर्थात् इस अलंकार ग्रन्थमें अलंकारोंके उदाहरण प्राचीन पुराणग्रन्थ, सुभाषित ग्रन्थ एवं पुण्यात्मा शलाकापुरुषोंके स्तोत्रोंसे उपस्थित किये गये हैं। अतः यह ग्रन्थ भी एक प्रकारसे स्तोत्रग्रन्थ है।
___ अलंकारचिन्तामणिमें 'उक्तञ्च' लिखकर वाग्भट्टालंकारके पद्य भी उद्धृत किये गये हैं।
ग्रन्थकार
इस ग्रन्थके रचयिता आचार्य अजितसेन हैं। ग्रन्थकर्ताके नामका निर्देश निम्नप्रकार उपलब्ध होता है
१. अलंकारचिन्तामणि, ज्ञानपीठ संस्करण, १/५, पृ. २।
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