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________________ प्रस्तावना ३. सम्यतत्त्व-पदतुल्य अर्थोंका समावेश । ४. समता-विषमताहीन कथन । ५. गाम्भीर्य-ध्वन्यर्थका समावेश । ६. रीति-पतत्-प्रकर्ष दोषका अभाव । ७. उक्ति-भणितिका समावेश । ८. माधुर्य-माधुर्यपूर्ण पदोंका सन्निवेश । ९. सुकुमारता-अनुस्वारसहित कोमल-कान्त पदावलीका सन्निवेश । १०. गति-स्वरका आरोह व अवरोह । ११. समाधि-अन्य धर्मका अन्य स्थानमें आरोप । १२. कान्ति-पद-उज्ज्वलता। १३. औजित्य-दृढ़बन्धता। १४. अर्थव्यक्ति-अर्थस्पष्टता । १५. औदार्य-विकटाक्षरबन्धता । १६. प्रसाद-झटिति अर्थ-प्रतीति । १७. सौक्षम्य-गुण-रीति निरूपण । १८. ओजः-समासकी बहुलता । १९. विस्तर-पद-विस्तार । २०. सूक्ति-च्युत-संस्कार दोषका अभाव । २१. प्रौढ़-कथनका सम्यक् परिपाक । २२. उदात्तता-प्रशंसनीय विशेषणोंसे पद-युक्तता । २३. प्रेयान् प्रिय पदार्थका प्रतिपादन । २४. संक्षेपक-अभिप्रायका संक्षेपमें प्रस्तुतीकरण । नायकके गुणोंका वर्णन करनेके पश्चात् धीरोदात्त, धीरललित, धीरशान्त और धीरोद्धत नायकोंका उदाहरणपूर्वक स्वरूप निर्धारण किया गया है। शृंगाररसकी अपेक्षासे दक्षिण, शठ, धृष्ट और अनुकूल ये चार नायकके भेद बतलाये गये हैं, और इन चारोंका सोदाहरण कथन किया गया है। नायकके कुल अड़तालीस भेद माने गये हैं और इनके सहायक विदूषक, विट और पीठमर्द बतलाये गये हैं। नायकोंके वर्णनके पश्चात् स्वकीया, परकीया और सामान्या इन तीनों नायिकाओं के लक्षण एवं उदाहरण वर्णित हैं। परकीया नायिकाके अन्योढ़ा और कन्या ये दो भेद एवं स्वकीयाके मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा ये तीन भेद सोदाहरण प्रतिपादित किये गये हैं। मध्या नायिकाके धीरा, अधीरा और धीरा-धीरा भेद उदाहरणपूर्वक निरूपित हैं। विशेषरूपसे नायिकाओंके आठ भेद बतलाये गये हैं। १. स्वाधीनपतिका । २. वासकसज्जिका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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