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________________ अलंकारचिन्तामणि १६. पतत्-प्रकर्षता-शैथिल्य । १७. प्रक्रमभंग-नियमभंग। १८. न्यूनोपमदोष-उपमेयकी अपेक्षा उपमानकी न्यूनता। १९. उपमाधिक-उपमेयकी अपेक्षा उपमानकी अधिकता । २०. अधिकपद । २१. भिन्नोक्ति । २२. भिन्नलिंग। २३. समाप्त-पुनराप्त-समाप्त वाक्यको पुनः शब्द द्वारा जोड़ना। २४. अपूर्ण दोष-सम्पूर्ण क्रियाका अन्वयाभाव । अर्थदोष अठारह प्रकारके बताये गये हैं१. एकार्थ-कथित अर्थसे अभिन्न होना। २. अपार्थ-वाक्यार्थसे रहित । ३. व्यर्थ-प्रयोजन रहित । ४. भिन्नार्थ-परस्पर सम्बन्धसे रहित वाक्यार्थ । ५. अक्रमार्थ-वाक्यार्थ पूर्वापर क्रमका अभाव । ६. परुषार्थ-क्रूरतायुक्त अर्थ । ७. अलंकारहीनार्थ-अलंकाररहित अर्थ । ८. अप्रसिद्धोपमार्थ-उपमानकी अप्रसिद्धि । ९. हेतुशून्य-कारणरहित अर्थ । १०. विरस-अप्रस्तुत रसका कथन । ११. सहचरभ्रष्ट-सदृश पदार्थके उल्लेखका अभाव । १२. संशयाढ्य-वाक्यार्थमें सन्देह । १३. अश्लील-लज्जाजनक अर्थ । १४. अतिमात्र-असम्भव अर्थ। १५. विसदृश-असदृश उपमान । १६. समताहीन-उपमानका उपमेयकी अपेक्षा अपकृष्ट या उत्कृष्ट होना। १७. सामान्य साम्य-उपमान, उपमेयकी समानता । १८. विरुद्ध-दिशा इत्यादिकी विरुद्धता। इनके अतिरिक्त देशविरुद्ध, लोकविरुद्ध, आगम, स्ववचन, प्रत्यक्षविरोध, अवस्थाविरोध, नामदोष आदिका भी निरूपण किया गया है । गुणके वर्णन-प्रसंगमें चौबीस गुणोंका उल्लेख आया है। इन गुणोंके सोदाहरण स्वरूप विवेचित हुए हैं। १. श्लेष-अनेक पदोंकी एक पदके समान स्पष्ट प्रतीति । २. भाविक-प्रतीतिरूप भावका समावेश ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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