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________________ २१० अलंकारचिन्तामणिः [ ४३०३यत्रात्यद्भुतचारित्रवर्णनाद् भूतभाविनोः । प्रत्यक्षायितता प्रोक्ता वस्तुनो विकं यथा ॥३०३।। न चातीतानागतयोः प्रत्यक्षवदवभासित्वं विरुध्यते अत्याश्चर्यार्थवर्णनया भावकानां चेतसि भावनोत्पत्तेः । तथा च प्रत्यक्षायमाणत्वं भावनया पौन:पुन्येन चेतसि निदर्शनाद् घटत एव । पिहिते कारागारे तमसि च सूचीमुखाग्रनिर्भेद्ये । मयि च निमीलितनयने तथापि कान्ताननं व्यक्तम् ॥३०४॥ इत्याद्यदश्यमानार्थेऽपि प्रत्यक्षायमाणत्वसंभवात् । चक्रिसेनाग्रतो रेजे चक्राब्जमरसद्दलम् । दलाने यस्य वाबिन्दुरिवालक्ष्यत सर्वभूः ॥३०५।। सकलद्वीपसागरयुक्तायाः सर्वभुवश्च' धारायां जलबिन्दुरूपतेति अद्भुतवर्णनया तत्र सा बिन्दुरेवेति भावनया भावकस्य प्रत्यक्षवत् प्रेतीति भाविक अलंकारका लक्षण जहाँ अत्यन्त विचित्र चरित्रके वर्णनसे अतीत और अनागत वस्तुओंकी वर्तमानके समान प्रतीति होने लगे, वहां भाविक अलंकार होता है ॥३०३॥ ____ यहाँ अतीत और अनागत वस्तुमें वर्तमानके समान प्रतीतिका होना विरुद्ध नहीं है, क्योंकि अत्यन्त आश्चर्यजनक वस्तुओंके वर्णनसे भावुकोंके चित्तमें भावनाको उत्पत्ति हो सकती है । अतएव प्रत्यक्षके समान भावनाका बार-बार चित्तमें उत्पन्न होना विरुद्ध नहीं है। उदाहरण कारागारके बन्द रहनेपर सघन अन्धकारमें नेत्र बन्द कर लेनेपर भी प्रियतमाका मुख साफ दिखलाई पड़ता है ॥३०४ । भावनातिरेकके कारण वस्तुके अदृश्य रहनेपर भी उसको प्रत्यक्षके समान प्रतीति होती है। चक्रवर्तीकी सेनाके आगे चक्राकार बलयुक्त चक्रकमल सुशोभित हुआ। इस चक्रके दलके अग्रभागमें समस्त पृथ्वी जलबिन्दुके समान दिखलाई पड़तो थी ॥३०५॥ समस्त द्वीप और सागरोंसे युक्त सारी पृथ्वीका चक्रकी धारामें जलबिन्दुरूपसे विलक्षण वर्णन होनेके कारण वहां वह बिन्दुके समान प्रतीत होती है, यह प्रतीति भावुकको प्रत्यक्ष के समान है । १, सर्वभुवश्चक्रधरायाम् -ख । २. प्रतिसम्भवः-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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