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________________ २०८ [४।२९६ अलंकारचिन्तामणिः 'निष्क्रामति पुरुः स्वामी स्तुवन्ति स्तुतिपाठकाः अनुयान्ति महीपाला वहन्ति शिविका सुराः ।।२९६।। उदिते भासति ज्ञानदोधितौ पुरुभर्तरि । विशदं भव्यचेतोऽदृक् छुकानां कलुषं मनः ।।२९७।। उदाहरणद्वय मुक्तं भिन्न विषयत्वे । एकविषयत्वे यथाआदिब्रह्महितोपदेशविमुखा 'मिथ्यादृशो जन्तवः । श्वभ्रेषु प्रभवन्ति यान्ति दलनं वाञ्छन्ति सौख्यास्पदम् । भ्रश्यन्त्युत्पतनं च यान्ति निहताः क्रन्दन्ति मूर्च्छन्ति ते। घूर्णन्ते प्रलपन्ति दुःखनिवहं ते "भुक्ष्वते सर्वदा ॥२९८।। गुणक्रियासाकल्येन यथाआदिब्रह्मणि सूदिते विशदहत्कौतूहलं निर्मलस्फाराक्षं वदनारविन्दविकचं भेरीरवव्यापनम् । नानाभूषणकान्तिपुजविसरव्याप्ताशमिन्द्रादयः साकेतं ययुरुत्तमाङ्गविनतिं कुर्वन्त आराद्वराः ॥२९९।। उदाहरण पुरु स्वामी नगरसे बाहर निकलते हैं। स्तुतिपाठक उनकी प्रशंसा करते हैं, राजा लोग पीछे-पीछे चलते हैं और देवता लोग उनकी पालकी को ढोते हैं ॥२९६॥ ____ ज्ञानभानुस्वरूप पुरुस्वामीके उदित तथा देदीप्यमान होनेपर सज्जन पुरुषोंका चित्त स्वच्छ तथा दृष्टिविहीन उल्लू स्वरूप दुष्टोंका मन कलुषित हुआ ।।२९७॥ उपर्युक्त उदाहरण भिन्न विषयक हैं । एक विषयक उदाहरण निम्न प्रकार है आदिब्रह्मा-तीर्थंकर ऋषभदेवके हितकारी उपदेशसे विमुख मिथ्यादृष्टि नरक जाते हैं, जहाँ वे कूटे जाते हैं, सुखप्रद स्थानकी कामना करते हैं, गिरते हैं, उठते हैं, पीटे जानेपर वे रोते हैं, बेहोश हो जाते हैं, छटपटाते हैं, अप्रासंगिक बोलते हैं और वे सर्वदा दुःखको भोगते रहते हैं ॥२९८।। गुण और क्रियाके समूहसे युक्त उदाहरण आदि ब्रह्माके अच्छी तरह उदित होनेपर इन्द्र इत्यादि देवगण स्वच्छ हृदय, कौतुक पूर्ण, स्वच्छ विकसित नयन तथा विकसित वदनारविन्द, भेरीको ध्वनिके साथ अनेक प्रकारके आभूषणोंके कान्ति-समूहके विस्तारसे दिशाओंको व्याप्त करते हुए तथा शिर अवनत किये हुए बहुत दूर साकेतपुरी-अयोध्यामें चले आते हैं ॥२९९ ॥ १. निष्कामति ....इत्यस्य पूर्वम् -ख- 'आदिब्रह्महितोपदेशविमुखा' इति पाठोऽस्ति । २. भास्वति-ख । ३. चेतोदृक् -ख । ४. मिथ्याद्विषो -ख । ५. भुञ्जते -क-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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