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________________ २०६ . अलंकारचिन्तामणिः [४।२९०'पवौ आदी येषां ते पवादयः । पकारादय ओष्ठ्यवर्णा न एषां तानि अपवादोनि च तेषां भावस्तत्ता निन्दावादिता च प्रश्नोत्तरे निबध्येते बहुधा चोत्तरादपि । प्रश्न उन्नोयते यत्र सोत्तरालक्रिया द्विधा ॥२९॥ यत्रानेकवारमुत्तरं प्रश्ननिरूपणपूर्वकं तदेकमुत्तरं यत्र च निबध्यमानादुत्तरात्प्रश्न उन्नेयः तदुत्तरं द्वितीयम् । क्रमेण यथा को लघुर्याचकः कोऽरिः पाप्मा को बन्धुरागमः । का निद्रा मूढता धर्म कस्त्राता जगतः पुरुः ॥२९१।। किमद्य ज्ञातव्यं बुधवरमहाभाग जगति । प्रभुः श्रीवीरारव्योऽजनि भुवि यदा कल्पविटपी। तदा जातो धर्मः परमविभवः कामसुरभिमहाजैनाश्चोद्यद्विविधचरिताः प्रादुरभवन् ।।२९२।। यदा वीरजिनो जातस्तदा धर्मः सुलभो जातः। जैनोत्तमाश्च नानाचारित्रभाजो बहवो जाताः । किं पृच्छ्यते त्वयाधुनेत्युत्तरात् श्रीवोर प्रभो सति 'प' और 'व' जिनके आदिमें हों, उन्हें पवादि पकार इत्यादि औष्ठ्य वर्ण जिनमें न हों, वह अपवादि, उसमें स्थित कर्म विशेषको अपवादिता-निन्दावादिता-शिकायतवचन । उत्तरालंकारका लक्षण जिसमें प्रायः प्रश्न और उत्तर दोनों अंकित किये जायें अथवा उत्तरसे हो प्रश्नको कल्पना कर ली जाये, उसे उत्तरालंकार कहते हैं और यह दो प्रकारका है ॥२९०॥ जहाँ अनेक बार उत्तर प्रश्न निरूपण सहित हो, वहाँ एक और जहाँ अंकित हुए उत्तरसे प्रश्नकी कल्पना की जाये, वहाँ द्वितीय उत्तरालंकार होता है। इन दोनोंको (१) प्रश्नोत्तर विशिष्ट और (२) उत्तरपूर्वक कहा जा सकता है। उदाहरण क्षुद्र कौन है ? याचक । शत्रु कौन है ? पाप । बन्धु कौन है ? शास्त्र । निद्रा क्या है ? धर्ममें विमुखता । जगत्का रक्षक कौन है ? पुरुदेव-ऋषभनाथ ॥२९॥ हे बुद्धिशालियोंमें भाग्यशाली! आज संसारमें जानने योग्य क्या है ? जब कल्पवृक्षके समान महावीर तीर्थंकरने इस भूमिपर जन्म लिया, तब सभी प्रकारकी कामनाओंको पूर्ण करने में समर्थ कामधेनु तुल्य परम सम्पत्तिशाली धर्मका प्रादुर्भाव हुआ और अनेक प्रकारके उत्तम चरित्रसे युक्त जैन प्रकट हो गये ॥२९२।। जब महावीर तीर्थंकर पैदा हुए, तब धर्म सबके लिए सुलभ हो गया। श्रेष्ठ जैन अनेक प्रकारके चरित्रसे युक्त हुए। तुम क्या पूछते हो ? अधुना इस उत्तरसे १. पवौ पवौ आदिर्येषाम्-ख । २. यथा -ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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