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________________ १८६ अलंकारचिन्तामणिः कैलासाद्री 'मुनीन्द्रः पुरुरपदुरितो मुक्तिमाप प्रपूतचम्पायां वासुपूज्यस्त्रिदशपतिनुतो नेमिरप्यूर्जयन्ते । पावायां वर्धमानस्त्रिभुवनेगुरवे विंशतिः तीर्थंनाथाः संमेदाद्री प्रजग्मुर्दधतु विनमतां निर्वृति नो जिनेन्द्राः || २२६ || इदमलंकारद्वयं पदार्थद्वयगतम् । अधुना निरूप्यते । वाक्ययोर्यत्र सामान्यनिर्देशः पृथगुक्तयोः । प्रतिवस्तूपमा गम्यौपम्या द्वेधान्वयान्यतः ॥ २२७॥ पृथगुक्तवाक्यद्वये यत्र वस्तुभावेन सामान्यं निर्दिश्यते तदर्थसाम्येन 'गम्यौपम्या प्रतिवस्तूपमा । अन्वयव्यतिरेकाभ्यां सा द्विधा क्रमेण यथाअमरेश्वर एवैकः शक्तः स्वर्लोकपालने । भरतेश्वर एवैकः क्षमः षट्खण्डपालने || २२८ ॥ [ ४२२६ वाक्यार्थं गतमलंकारद्वयं कर्मकलंक रहित परम पवित्र मुनीन्द्र पुरुदेव -- ऋषभदेवने कैलास पर्वत पर मुक्तिको प्राप्त किया, देवेन्द्रोंसे पूजनीय वासुपूज्यने चम्पानगरी में; नेमिनाथने ऊर्जयन्त गिरिपर; वर्द्धमानने पावापुरी में और शेष • बीस तीर्थंकरोंने संमेदाचलसे मुक्तिको प्राप्त किया । अतः सज्जनो ! इस त्रिभुवन श्रेष्ठ पर्वतको नमस्कार कीजिए ॥ २२६ ॥ उक्त अलंकार दो पदार्थों में हैं । अब वाक्यार्थों में रहनेवाले अलंकारोंका निरूपण करते हैं | प्रतिवस्तूपमाका स्वरूप - जिसमें अलग-अलग कहे हुए दो वाक्योंमें वस्तुको समतासे निर्देश हो, और उनके अर्थको समता से उपमानोपमेय भावकी प्रतीति होती हो, उसे प्रतिवस्तूपमा अलंकार कहते हैं । यह अन्वय और तदितर व्यतिरेकके भेदसे दो प्रकारका होता है ॥ २२७॥ अन्वय प्रतिवस्तूपमाका उदाहरण इस अलंकार के लिए चार बातें अपेक्षित हैं - ( १ ) दो वाक्यों या वाक्यार्थों का होना, (२) दोनों वाक्यों या वाक्यार्थों में एकका उपमेय और दूसरेका उपमान होना, (३) दोनों वाक्यों या वाक्यार्थों में एक साधारण धर्मका होना और (४) उस साधारण धर्मका भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा कथन किया जाना । भूमिके पालन करने में समर्थ हैं ।। २२८ || एक ही इन्द्र स्वर्गके पालन करनेमें समर्थ है और एक ही भरतेश्वर छह खण्ड Jain Education International १. खप्रती मुनीन्द्रः इति पदं नास्ति । २. गुरवो - क ख । ३. पदार्थगतम् -क-ख । ४. द्वेधान्वन्यतः - ख । ५. वस्तुप्रतिवस्तुभावेन - ख । ६. गम्योपम्यो - ख । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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