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________________ अलंकारचिन्तामणिः कालोरगाभखड्गेन कीर्तिर्गङ्गोपमोदभूत् । जयाशास्तां द्विषो युद्धे चक्रयालोकात् पतन्त्यमी ॥ २१३॥ ។ नीलवर्णायुधेन गङ्गाशुभ्रं यशो जातमिति कारणाद्विरुद्धकार्योत्पत्तिरित्येका विषमालंकृतिः । न केवलस्य रणोद्योगफलस्य जयस्य अनुत्पत्तिः किन्तु प्राणनाशरूपस्यानर्थस्योत्पत्तिरपीत्यकार्यभूतस्यानर्थस्योद्भवे द्वितीयं विषमम् । निःशेषत्रिदशेन्द्रशेखर शिखा रत्नप्रदीप्रावलिसान्द्रीभूतमृगेन्द्रविष्टर तटीमाणिक्यदीपावली | क्वेयं श्रीः क्व च निस्पृहत्वमिदमित्यू हातिगस्तादृशः सर्वंज्ञानदृशश्चरित्रमहिमा लोकेशलोकोत्तरः ॥ २१४॥ सस्पृहत्वयोग्यायाः श्रियो निस्पृहत्वस्य घटनमिति विरूपयोवंस्तुनोः संघट्टने तृतीयं विषमम् । १८२ "यत्रान्योन्यानुरूपाणामर्थानां घटना समम् । ६ * सुभद्रा भरतेशस्य लक्ष्म्या सममभूद्वरा ||२१५॥ विषमालंकारका उदाहरण काल सर्प के समान तलवारसे गंगाके समान कीर्ति उत्पन्न हुई; युद्धक्षेत्र में शत्रु चक्री भरतके देखते ही भयके कारण भूमिपर गिर पड़े ।। २१३|| काले वर्णकी तलवार से गंगाके समान श्वेत यश उत्पन्न हुआ । यहाँ कारण से विरुद्ध कार्यकी उत्पत्तिका वर्णन है । अतः विषमालंकार है । केवल युद्ध के उद्योगफल की उत्पत्तिका अभाव ही नहीं हुआ, किन्तु प्राणनाशरूप अनर्थ की उत्पत्ति भी हुई । अतएव अकार्यस्वरूप अनर्थकी उत्पत्ति होनेपर यह द्वितीय विषमालंकार है । तृतीय विषमालंकारका उदाहरण [ ४।२१३ सम्पूर्ण देवेन्द्रों के मुकुटमणि स्वरूप दीपपंक्ति से घनीभूत सिंहके निवास स्थान स्वरूप गुफा के आस-पास के माणिक्यरूपी दीपश्रेणीसे सुशोभित लक्ष्मी कहाँ और कहाँ यह निस्पृहता ? इस प्रकार कल्पनाका अतिक्रमण करनेवाले सर्वज्ञान दृष्टि सम्पूर्ण लोकके अधीश्वर के चरित्रकी महिमा कहाँ ? अर्थात् दोनों में महान् भेद है ॥२१४॥ स्पृहायुक्त लोगोंके योग्य लक्ष्मीका स्पृहारहित के साथ वर्णन होनेसे तृतीय प्रकारविषमालंकार है । सम अलंकारका स्वरूप और उदाहरण - जिसमें परस्पर समानरूपवाले पदार्थोंका मिलाप वर्णित हो, उसे सम अलंकार कहते हैं । यथा — भरतकी सुभद्रा लक्ष्मी के समान श्रेष्ठ प्रतीत हुई ॥ २१५ ॥ .... १. न केवलं रणोद्योगस्य -क । न केवलं रणोद्योगफलस्य -ख । २. योत्पत्तिश्चेत्य कार्य - ख । ३. प्रदीपावली - ख । ४. त्वादृशः - क ख । ५ यत्रान्योन्यरूपाणा - ख । ६. सुभद्राम् — ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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