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________________ १८१ -२१२] चतुर्थः परिच्छेदः अत्रादातु त्यजन्ति स्मेति विपरीतफलप्राप्त्यर्थः प्रयत्नः । विरोध. मूलत्वादन्योन्यस्यान्योन्यं कथ्यते परस्परक्रियाद्वारमुत्पाद्योत्पादकत्वकम् । यत्र सूरिभिरुक्तासावन्योन्यालंकृतिर्यथा ॥२१०॥ पुरुणारोहता मेरुं सिंहासनमलंकृतम् । नानारत्नभृता तेन पुरुरापाधिकां श्रियम् ॥२१॥ जन्माभिषेकावसरे आरोहता नाभिशिशुना हेममयवपुषा सिंहासनं भूषितं तेनायमिति पुरुपीठयोरन्योन्यभूष्यभूषकत्वम् । विरोधमूलं विषमं निरूप्यते-- हेतोविरुद्ध कार्यस्य यत्रानर्थस्य चोद्भवः। विरूपघटना त्रेधा विषमालंकृतिर्यथा ॥२१२॥ यहाँ लेनेके लिए देते थे, इस विपरीत फलको प्राप्तिके लिए प्रयत्न है । विरोधमूलक होने के कारण अन्योन्यालंकारका वर्णन किया जाता हैअन्योन्यालंकारका लक्षण जिसमें आपस में एक क्रियाके द्वारा उत्पाद्य और उत्पादकत्वका वर्णन हो, विद्वानोंने उसे अन्योन्यालंकार माना है ।।२१०॥ तात्पर्य यह है कि जहाँ दो पदार्थ एक ही क्रिया द्वारा परस्पर एक दूसरेके उत्कर्षकारक रूपमें वर्णित किये जाये, वहाँ अन्योन्य अलंकार आता है। अन्योन्यालंकारका उदाहरण पुरुदेवने मेरुपर्वतके समान सिंहासनपर आरूढ होते हुए उसे सुशोभित किया और अनेक रत्नोंके धारण करने वाले उस मेरुसे पुरुने अधिक सम्पत्ति-शोभाको प्राप्त किया ॥२११॥ ___ जन्माभिषेकके अवसर पर मेरुपर चढ़ते हुए नाभिपुत्र पुरुदेवने सुवर्णके समान शरीरसे सिंहासनको अलंकृत किया और उस सिंहासनमे पुरुको शोभाको वृद्धिंगत किया। अतएव पुरुदेव और सिंहासनका परस्परमें 'भूष्य-भूषकभाव होनेसे अन्योन्यालंकार है। विरोधमूलक विषमालंकारका लक्षण जहाँ कारणसे विपरीत कार्यकी उत्पत्ति एवं अनर्थको उत्पत्ति वणित हो, वहाँ विषमालंकार होता है। विरूपघटनावली तीन प्रकारको होती है, अतः विषमालंकार भी तीन प्रकारका माना जाता है ॥२१२।। विषमालंकारके तीन भेद है-(१) दो बे-मेल पदार्थोके सम्बन्धका वर्णन, (२) कार्य एवं कारणको गुण-क्रियाओंका परस्पर वैपरीत्य प्रतिपादन, (३) कार्यानुकूल फल प्राप्तिके स्थानपर तद्विपरीत परिणामका निरूपण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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