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________________ -१९७] चतुर्थः परिच्छेदः १७५ इन्द्रविहारस्य पर्वतवात्सल्यमिति क्रियागुणयोविरोधः । विबुधानां विदुषामोशोऽभीष्टदायी चक्री ॥ विकासमपि पद्मानां कुर्वन् राजा निधीश्वरः । द्रव्येणात्र क्रियायास्तु विरोधः श्लेषतो मतः ॥१९४॥ चन्द्रस्य परमतापेक्षयैकत्वे न द्रव्यत्वम् ।। रजितापि त्वया राजन् भूमिः शुभ्रा बभूव भोः । गुणेनात्र गुणस्यास्ति विरोध: कविसंमतः ॥१९५।। रक्तत्वशुभ्रत्वयोविरोधः। ' वेषप्रतापयुक्तोऽपि कलानिधिरिति स्तुतः । द्रव्येणात्र गुणस्यास्ति विरोधः कविभाषितः ॥१९६।। धर्मराजोऽपि चक्रेशो राजराज इति स्तूतः । द्रव्येणात्र विरोधोऽस्ति द्रव्यस्य श्लेषतः स्फुटम् ॥१९७।। इन्द्रविहार क्रियाका पर्वत वात्सल्य गुणके साथ विरोध है। विबुधानाम्विद्वानोंका, ईश:-अभीष्टदाता चक्री मान लेनेसे विरोधका परिहार हो जाता है । द्रव्य के साथ क्रियाका विरोधामास चक्रवर्ती राजा अथवा चन्द्रमा लक्ष्मी अथवा कमलको विकसित करता है । यहाँ . द्रव्यके साथ क्रियाका विरोध श्लेष माना गया है ।१९४।। मतान्तरसे चन्द्रमामें स्थित एकत्वके कारण द्रव्यत्व नहीं है। गुणके साथ क्रियाका विरोध हे राजन् ! आपके द्वारा लाल की हुई पृथिवो श्वेत है। यहां लाल करनेरूप क्रियाका श्वेत गुणके साथ कवियों द्वारा विरोध माना गया है ॥१९५॥ रक्तत्व और शुभ्रत्वका परस्पर विरोध है। द्रव्यसे गुणका विरोध वेश और प्रतापसे युक्त भी आप कलानिधि-चन्द्रमा हैं, ऐसा कहकर आपकी स्तुति की गयी है, यहाँ द्रव्य से गुणका विरोध कवियोंके द्वारा कहा गया है ॥१९६॥ द्रव्यसे द्रव्यका विरोध धर्मराज-यमराज भी चक्रवर्ती राजराजः-कुवेर अथवा राजाओंके राजा हैं, ऐसा कहकर चक्रवर्ती भरतकी स्तुति की गयी। यहाँ द्रव्यसे द्रव्यका विरोध कहा गया है ॥१९७॥ २. गुणिनात्र -ख । १. -ऽभीष्टदायीत्वे चक्री -ख । ४. स्फुट:-ख । ३. एष प्रताप....ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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