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________________ १७४ . . अलंकारचिन्तामणिः [४।१९१रत्नाकरोऽपि सन्मार्गो भरताह्वयचक्रभृत् । जातेद्रव्य विरोधोऽयं श्लेषेणेति निरूपितः ॥१९॥ सन्मार्गस्य गगनस्यैकत्वेन द्रव्यत्वं कथंचित् । तत्त्वं सत्त्वादिना येन नैकेनाप्यवधारितम् । तद्वित्तथाप्यसावेव स सुपाश्र्वोऽस्तु मे गुरुः ॥१९२।। सत्त्वादिना अस्तित्वनास्तित्वादिना धर्मेण एकेनापि नावधारितं किंचिदपि न ज्ञातं तथापि तत्त्ववेदी सर्वथास्तित्वादिना न वेत्ति कथंचिदस्तित्वादिना जानातोति परिहारः । अनिश्चयक्रियाया विरोधः । विबुधेशविहारोऽपि गोत्रवात्सल्यमण्डितः। क्रियायास्तु गुणेनात्र विरोधः श्लेषतो मतः ।।१९३।। जातिका द्रव्यके साथ विरोधामास चक्रवर्ती भरत रत्नाकर-समुद्र होनेपर भी सन्मार्गगामी है, यह विरोध है, यतः समुद्र उन्मार्गो होता है, सन्मार्गी नहीं। परिहारके लिए रत्नाकर बहुत रत्नवाला होनेपर भी सन्मार्गी है, अर्थ करना चाहिए ॥१९१।। सन्मार्ग और गगनमें एकत्व होनेसे कथंचित् द्रव्यत्व माना गया है । अनिश्चय क्रिया विरोधका उदाहरण जिन्होंने अनेकान्तात्मक वस्तुमें सत्, या असत् आदिरूपसे वस्तुतत्त्वका निर्णय नहीं किया, तो भी तत्त्व--अनेकान्तात्मक वस्तुतत्त्व के ज्ञाता वे भगवान सुपार्श्वनाथ मेरे गुरु हैं ॥१९२॥ अस्तित्व, नास्तित्व इत्यादिरूपमें जिसने एकान्तरूपसे वस्तु स्वरूपका निर्धारण नहीं किया, अपितु अनेकान्तरूपसे वस्तु स्वरूपका निर्धारण किया है, अर्थात् सर्वथा अस्तित्वरूपसे जो वस्तुस्वरूप को नहीं जानता, कथंचित्रूपसे अस्तित्व, नास्तित्व आदिका जो जानकार है। इस प्रकार विरोधका परिहार हो जाता है। यहाँ अनिश्चयएकान्तरूपसे वस्तु अनिश्चय रूप क्रियाके साथ विरोध है, और इसका परिहार कथंचित्के द्वारा हो जाता है । यह अनिश्चय क्रिया विरोध है। . गुणसे क्रियाका विरोध इन्द्रका विहार होनेपर भी पर्वत प्रेमसे सुशोभित है । यहाँ गुणसे क्रियाका विरोध श्लेषके बलसे माना गया है । इन्द्रविहारका सम्बन्ध पर्वतोंके कष्टके साथ है, प्रेमके साथ उसका विरोध है । परिहारके लिए विबुधेशका अर्थ विद्वान् मानना उपयुक्त है ॥१९३॥ १. यवदारितम् --ख । २. खप्रती ‘सत्त्वादिना' पदं नास्ति । ३. विज्ञातं तत्त्ववेदी -ख। ४. अनिश्चय क्रियायाः निश्चय क्रियया विरोधः -क। अनिश्चयक्रियायाः निश्चयक्रियाया विरोध:-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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