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________________ १४० . ४१९२ अलंकारचिन्तामणिः त्वद्वदाभाति देवेन्द्रस्त्वं मेरुरिव राजसे। इत्येवमादिकं योग्यं वर्णनीयं मनीषिभिः ।।१२।। असम्मतिः क्वचित्तेषां धीमद्भिः क्रियते यथा। हंसीव चन्द्रमाः शुभ्रो नभः पद्माकरा इव ॥१३॥ शुनीव गृहदेव्यस्ति खद्योतो जिनबोधवत् । इत्यादिस्त्यज्यते सद्भिश्चिन्त्यतां तत्र कारणम् ॥१४॥ इववायथासमा निभतल्यसंकाशनीकाशप्रतिरूपक-प्रतिपक्षप्रतिद्वन्द्वप्रत्य - नीविरोधीसदृक्सदृक्षसमसंवादिसजातीयानुवादिप्रतिबिम्बप्रतिच्छन्दसरूपसंमितसलक्षणाभसपक्षप्रख्यप्रतिनिधिसवर्णतुलितशब्दाः कल्पदेशीयदेश्यवदादिप्रत्यया - न्ताश्च चन्द्रप्रभादिशब्देषु समासश्च ॥ द्रुह्यति निन्द्यति हसति प्रतिगर्जति संरुणद्धि धिक्कुरुते । अनुवदति जयति चेय॑ति तनुतेऽसूयति कदर्थयति ॥२५॥ तुम्हारे समान इन्द्र शोभता है, तुम मेरुके समान शोभित हो; इत्यादिरूपसे मनीषियोंको यथायोग्य वर्णन करना चाहिए ॥१२॥ बुद्धिमान व्यक्ति कहीं उपमा इत्यादिमें अपनी असम्मति प्रकट करते हैं, जैसे हंसीके समान चन्द्रमा श्वेत है, आकाश कमलयुक्त सरोवरके समान है ।।९३॥ गृहस्वामिनी कुतियाके समान है और खद्योत जिनेश्वरके ज्ञानके समान है, इत्यादि वाक्य उपमाविशिष्ट नहीं कहे जाते । विद्वानों और कवियोंको उपमेय और उपमानके साम्यका विचारकर ही उपमा प्रयोग करना चाहिए । क्रियासाम्य, गुणसाम्य और प्रभावसाम्यके औचित्यका ध्यान रखना अवश्यक है ॥९४॥ . सादृश्यवाचक शब्द इव, वा, यथा, समान, निभ, तुल्य, संकाश, नीकाश, प्रतिरूपक, प्रतिपक्ष, प्रतिद्वन्द्व, प्रत्यनीक, विरोधी, सदृक्, सदृक्ष, सदृश, सम, संवादि, सजातीय, अनुवादि, प्रतिबिम्ब, प्रतिच्छन्द, सरूप, सम्मित, सलक्षणभ, सपक्ष, प्रख्य, प्रतिनिधि, सवर्ण, तुलित शब्द और कल्प, देशीय, देश्य, वत्, इत्यादि प्रत्ययान्त तथा चन्द्र प्रभादि शब्दोंमें समासका उपमामें प्रयोग करने योग्य शब्द सादृश्यवाचक हैं । द्रोह करता है, निन्दा करता है, हँसता है, विरोधमें बोलता है, अच्छी तरह रोकता है, तिरस्कार करता है, पतला करता है, असूया करता है, कष्ट देता है ॥९५॥ १. निभसंनिभतुल्य-ख। २. नोकाशप्रतिकाशप्रकाशतिरूपक-ख। ३. विरोधि-ख। ४. सदृक्षसदृशसम-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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