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________________ १२८ अलंकारचिन्तामणिः [४।४२'लुप्ता तद्धितगानुक्तधर्मा चार्थी मता यथा। गौतमं जिनदेशीयं नमामि गणिनं मुदा ॥४२।। एकस्य धर्मस्यानुपादानं लुप्तत्वमेषूदाहरणेषु । लुप्ता कर्मक्यचानुक्तधर्मेवादिर्यथा तु सा । भरतेशयशोवृन्दं कैलासीयति पर्वतान् ॥४३॥ लुप्ताधारक्यचानुक्तधर्मेवादिर्यथा पुनः । चक्री लतागृहे वासगेहीयति सुभद्रया ॥४४।। लुप्ता कर्मणमानुक्तधर्मेवादिर्यथा मता। पुरोरङग महामेरुदर्श पश्यन्ति साधवः ॥४५॥ लुप्ता कर्तृणमानुक्तधर्मेवादिर्यथा मता। भरतेशयशो लोके ज्योत्स्नाचारं चरत्यरम् ॥४६॥ तद्धितगता अनुक्तधर्मा आर्थी लुप्तोपमा जिनेश्वरसे ईषद् न्यून या उनके समान-केवलज्ञानकी प्राप्ति होनेपर समान ज्ञानी गौतम गणधरको प्रसन्नतापूर्वक प्रणाम करता हूँ ॥४२॥ उपर्युक्त उदाहरणोंमें एकधर्म के कथनाभावसे लुप्तोपमा है। अनुक्तधर्म और लुप्तोपमाका उदाहरण कर्मणि क्यच होनेसे अनुक्तधर्म तथा इवादिके न होनेपर लुप्तोपमाका उदाहरण बतलाते हैं। भरतेशकी कोतिराशि अन्य पर्वतोंको कैलास पर्वतके समान बना रही है ॥४३।। ___ यहाँ कीतिराशिकी उज्ज्वलता अनुक्त है और सादृश्यवाचक इवादि शब्दोंका प्रयोग भी नहीं किया है; अतः अनुक्तधर्मा लुप्तोपमा है। पुनः आधार क्यच होनेसे अनुक्तधर्मा, इवादि लुप्तोपमाका उदाहरण बतलाते हैं। चक्रवर्ती सुभद्राके साथ लतागृहमें विलासभवनके समान आचरण करता है ॥४४॥ कर्मणमा अनुक्तधर्मा लुप्तोपमाका उदाहरण कर्ममें णम् होनेसे अनुक्तधर्मा इवादिलुप्ता लुप्तोपमालंकार होता है। मुनिजन या साधुपुरुष पुरु-आदितीर्थंकर ऋषभदेवके शरीरको महान् मेरुके समान देखते हैं ॥४५॥ कर्तृणमा अनुक्तधर्मा लुप्तोपमाका उदाहरण ___ कर्नामें णम् होनेसे अनुक्तधर्मा-सामान्यधर्मके लोप होने एवं इवादिके लोप होनेपर लुप्तोपमा होती है। यथा-इस संसारमें चक्रवर्ती भरतका यश चन्द्रिकाके समान सर्वदा घूमता है ॥४६।। १. लुक्ता-ख। २. लुप्ता दारुक्यचानुक्त-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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