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प्रस्तावना
१५
वाद्यका आयोजन, और विवाहका वर्णन करते समय, स्नान, शरीरकी स्वच्छता, वस्त्राभूषण, अलंकार, मधुरगीत, विवाह-मण्डप, वेदी, नाटक, नृत्य एवं वाद्योंकी विविध ध्वनिका चित्रण आवश्यक है। विवाहके सन्दर्भ में ही उष्ण निःश्वास, मानसिक चिन्ता, शरीरकी दुर्बलता, शिशिरऋतु होनेपर भी ग्रीष्मकी अधिकता, रात्रि या दिनकी दीर्घता, रात्रि-जागरण, हँसी, प्रसन्नता, और विविध प्रकारकी भाव-भंगिमाओंका चित्रण करना चाहिए ।
सीत्कार, कण्ठालिंगन, नखक्षत, दन्तक्षत, करधनी, कंकण, मंजीरकी ध्वनि, और स्त्रीका पुरुषके समान आचरण आदिका वर्णन सुरतके वर्णन-प्रसंगमें करना चाहिए। स्वयंवरका वर्णन करते समय नगाड़ा, मंच, मण्डप, कन्या, तथा स्वयंवरमें पधारे राजाओंके वंश, प्रसिद्धि, यश, वैभव, रूप-लावण्य, आकृति-प्रभृतिका चित्रण करना चाहिए । पुष्पावचयके सन्दर्भमें पुष्पचयन, परस्पर वक्रोक्ति, गोत्र-स्खलन, रागपूर्वक अवलोकन इत्यादिके वर्णन करनेका नियमन है। जल-क्रीड़ाके सन्दर्भमें जल-संक्षोभ, जलमन्थन, हंस और चक्रवाकका वहाँसे दूर हटना, धारण किये हुए हारादि अलंकारोंका गिर पड़ना, जलसीकरोंकी श्वेतता, जलसीकरयुक्त मुख एवं श्रम इत्यादिका वर्णन करना चाहिए । - अजितसेनने अन्य आचार्योंके मतानुसार वर्ण्य विषयोंका निरूपण करते हुए महाकाव्यमें अठारह विषयोंके वर्णित किये जानेका निर्देश किया है-१. चन्द्रोदय, २. सूर्योदय, ३. मन्त्र, ४. दूत, ५. जलक्रीड़ा, ६. राजकुमारका अभ्युदय, ७ उद्यान, ८. समुद्र, ९. नगर, १०. वसन्तादि ऋतुएँ, ११. पर्वत, १२. सुरत, १३. समर-युद्ध, १४. यात्रा, १५. मदिरापान, १६. नायक-नायिकाकी पदवी, १७. वियोग एवं १८, विवाहका चित्रण महाकाव्यमें आवश्यक माना है।
__इस परिच्छेद में महाकाव्यके वर्ण्य विषयों के अतिरिक्त कवि-समयोंका भी कथन किया है। कवि-समय तीन प्रकारके होते हैं-१. जो वस्तु संसारमें नहीं है उसका उल्लेख, २. जो वस्तु संसारमें है उसका अनुल्लेख और ३. समान जाति वाले पदार्थोंका संक्षेपमें नियमानुसार वर्णन करना कवि-समय है।
प्रथम कविसमय असत्में सत् वर्णन-सम्बन्धी है । यथा-सभी पर्वतों पर रत्नादि की उपलब्धि, छोटे-छोटे जलाशयोंमें भी हंसादि पक्षियोंका वर्णन, जलमें तारकावलीका प्रतिबिम्ब, आकाशगंगा एवं अन्य नदियोंमें भी कमलादिका वर्णन, अन्धकारका सूचिकाभेदन, उसका मुष्टिग्राह्यत्व, ज्योत्स्नाका अंजलि-ग्राह्यत्व आदि। असत् वर्णन रूप कवि-समयके अन्तर्गत प्रतापके वर्णन-प्रसंगमें उसे रक्त या उष्ण कहना, कीर्तिमें हंसादिकी शुक्लता, अयशमें कालिमा, क्रोध और प्रेमकी अवस्थामें रक्तिमाका वर्णन करना असत्-वर्णन कवि-समय है। कवि-समयके अनुसार प्रतापको रक्त, कीतिको शुक्ल, अपयशको कृष्ण, एवं क्रोध-प्रेमको अरुण माना जाता है। समुद्रकी चार संख्या, चकवा-चकवीका रातमें वियोग, चकोर पक्षी और देवताओंका चन्द्रमें निवासका वर्णन
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