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अलंकारचिन्तामणि हरीतिमा आदि वर्णनीय हैं। वन-वर्णनके प्रसंगमें सर्प, सिंह, व्याघ्र, शूकर, हरिण, एवं विविध तरुओंके साथ भालू, उल्लू इत्यादिका एवं कुंज, बल्मीक तथा पर्वत इत्यादिका वर्णन करना आवश्यक है।
___ इस कवि-शिक्षा मन्त्रके अन्तर्गत साम, दाम, भेद और दण्ड इन चार उपायों का; प्रभाव, उत्साह और मन्त्र इन तीन शक्तियोंका; कुशलता तथा नीतिका; वर्णन आवश्यक माना है । दूतके गुण, विजय-यात्राके समय चतुरंगिणी सेनाकी विविध प्रवृत्तियाँ एवं वातावरणका वर्णन आवश्यक बताया है । मृगयाके वर्णन-प्रसंगमें जंगली पशुओंके भय, पलायन, उनकी विभिन्न प्रकारकी शारीरिक और मानसिक चेष्टाएँ, चित्रित करनेका नियमन किया है। अश्व और गजोंका वर्णन करते समय उनकी जाति, गति, विभिन्न गुण-दोष, शारीरिक शक्ति, रूप-सौन्दर्य आदिका वर्णन आवश्यक माना है।
षट्ऋतुओंके वर्णनीय विषयोंका निरूपण करते हुए वसन्त ऋतुमें दोला, मलयानिल, भ्रमर-वैभवकी झंकार, कुड्मलकी उत्पत्ति, आम्र, मधूक आदि वृक्ष, पुष्प, मंजरी, एवं लता आदिका वर्णन; ग्रीष्म ऋतुका वर्णन करते समय मल्लिका, ऊष्मा, सरोवर, पथिक, शुष्कता, मृग-तृष्णा, मृग-मरीचिका, प्रपा, कूप या सरोवरसे जल भरनेवाली नारियोंका दृश्य-चित्रण; वर्षा ऋतुमें मेघ, मयूर, वर्षाकालीन सौन्दर्य, झंझावात, वृष्टिके जलकण, फुहार और बौछार, हंसोंका निर्गमन, केतकी, कदम्बादिकी कलिकाएँ और उनके विकासका चित्रण; शरद् ऋतुका चित्रण करते समय चन्द्रमा और सूर्यकी स्वच्छ किरणें, हंसोंका आगमन, वृषभादि पशुओंकी प्रसन्नता, स्वच्छ जल-सरोवर, कमल, सप्तपर्ण आदि पुष्प एवं जलाशय आदि; हेमन्त ऋतुके वर्णनमें हिमयुक्त लताएँ, मुनियोंकी तपस्या, कान्ति, सरोवर, नदीतट आदिका चित्रण; एवं शिशिर ऋतुमें शिरीष और कमलका विनाश अत्यधिक शैत्यके कारण कम्पन, अग्निकी अनुष्णता, सूर्य, आतापकी सहिष्णुता आदिका वर्णन करना आवश्यक है ।
सूर्यका वर्णन करते समय उसकी अरुणिमा, कमलका विकास, चक्रवाककी आँखोंकी प्रसन्नता, अन्धकारका नाश, कुमुदिनीका संकोचन, तारा-चन्द्रमा-दीपककी प्रभावहीनता एवं कुलटाओंकी पीड़ाका चित्रण; चन्द्रमाके वर्णनमें मेघ, कुलटा, चकवा-चकवी, चोर, अन्धकार, वियोगियोंकी मर्म-व्यथा, उज्ज्वलता, समुद्र, कैरव और चन्द्रकान्तमणिकी प्रसन्नताका चित्रण; आश्रमके वर्णनमें मुनियोंके समीप सिंह, हाथी, हिरण आदिकी शान्त-वृत्ति; सभी ऋतुओंमें प्राप्त होनेवाले फल, पुष्प, प्राकृतिक सौन्दर्य छटा, इष्टदेव पूजन-यजन, एवं युद्ध-वर्णनमें तूर्य आदि वाद्योंकी ध्वनि, तलवार, कटार आदिकी चमक, धनुषकी प्रत्यंचापर बाण चढ़ाना, छत्र-भंग, कवच-भेदन, गज-रथ और सैनिकोंका वर्णन अपेक्षित है।
उत्सवोंके चित्रण भी सांगोपांग होने चाहिए। जन्म-कल्याणकका वर्णन करते समय गर्भावतरण, जन्माभिषेकके समय ऐरावत हाथी, सुमेरु पर्वत, समुद्र, देवों द्वारा जय-जय-ध्वनि, विद्याधर और मनुष्यों द्वारा विभिन्न प्रकारके हर्षोल्लास, नृत्य, गीत
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