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________________ प्रस्तावना लज्जा, नम्रता, व्रताचरण, सुशीलता, प्रेम, चातुर्य, व्यवहार-निपुणता, लावण्य, मधुरालाप, दयालुता, शृंगार, सौभाग्य, मान, काम-सम्बन्धी विविध चेष्टाएँ, पैर, तलवा, गुल्फ, नख, जंघा, सुन्दर घुटना, उरु, कटि, रोमपंक्ति, त्रिवलि, नाभि, मध्यभाग, वक्षस्थल, गर्दन, बाहु, अंगुलि, हाथ, दाँत, श्रेष्ठ, कपोल, आँख, भौंह, ललाट, कान, मस्तक, वेणी आदि अंग-प्रत्यंगों एवं गमनरीति, जाति आदिका वर्णन, महिषीके वर्णनीय गुणोंमें सम्मिलित हैं । राजपुरोहितका वर्णन करते हुए उसे शकुन और निमित्तशास्त्रका ज्ञाता, सरल, शक्तिशाली, सत्यवक्ता, पवित्र, शास्त्रज्ञ एवं प्रत्युत्पन्नमति कहा गया है। राजकुमारके वर्णनीय गुणोंमें राजाकी भक्ति, कला-परिज्ञान, नम्रता, शस्त्रप्रयोगका परिज्ञान, शास्त्राभ्यास, युद्ध-कलाविज्ञता, सुगठित शरीर, विनोदप्रियता आदि गुण सम्मिलित हैं। राजमन्त्री पवित्र विचारोंवाला, क्षमाशील, वीर, नम्र, बुद्धिमान्, राजभक्त, आन्वीक्षिकी आदि विद्याओंका ज्ञाता, व्यवहारनिपुण, एवं स्वदेशमें उत्पन्न वस्तुओंके उद्योगमें प्रयत्नशील, राजनीति और अर्थनीतिका ज्ञाता होता है । सेनापति, निर्भय, अस्त्र-शस्त्र का अभ्यासी, युद्धकलाविज्ञ, अश्वादिकी सवारीमें पटु, राजभक्त, महान् परिश्रमी, विद्वान् एवं प्रत्युत्पन्नमति होता है। देशके वर्णनीय विषयोंमें पद्मरागादि मणियाँ, नदी, स्वर्ण, अन्नभण्डार, खनिज पदार्थ, विशाल भूमि, ग्राम, नगर, जनसंख्या, कृषि, उद्योग, वाणिज्य, धन, धान्य आदि सम्मिलित हैं । ग्रामका वर्णन करते समय अन्न, सरोवर, लता, वृक्ष, गाय, बैल इत्यादि पशु-सम्पत्ति, ग्रामीणोंकी सरलता, अज्ञानता, घटीयन्त्र, कृषि, खेत, खलिहान आदि बातोंका कथन करना आवश्यक है। नगरके चित्रणमें परकोटा, दुर्ग-प्राचीर, अट्टालिका, खातिका, तोरण, ध्वजा, सुधालिप्त भवन, राजपथ, वापिका, वाटिका, मन्दिर, पवित्र-स्थान आदिका ध्यान रखना आवश्यक है। सरोवरके वर्णन-प्रसंगमें कमल, तरंग, कमल-पुष्प, गज-क्रीड़ा, हंस-हंसी, चक्रवाक, भ्रमर एवं तीर-प्रदेशमें स्थित उद्यान, लता, पुष्प प्रभृतिका चित्रण करना आवश्यक माना गया है । समुद्र में विद्रुम, मणि, मुक्ता, तरंग, जलपोत, जलहस्ति, मगर, नदियोंका प्रवेश एवं निर्गमन, संक्षोभ-चन्द्रोदयजन्य हर्ष, गर्जन-तर्जन इत्यादिका वर्णन समुद्रवर्णनके क्रममें अपेक्षित है। नदीके वर्णनमें समुद्र-गमन, हंस-मिथुन, मछली, कमल, पक्षियोंका कलरव, तटपर उत्पन्न लताएँ, कमलिनी, कुमुदिनी, सन्तरण करते हुए मानव, एवं तटोंके आकार-प्रकारका चित्रण करना आवश्यक है। उद्यानके वर्णनीय विषयोंमें कलिका, कुसुम, फल, लता, मण्डप, विभिन्न प्रकारके तरु, कोयल, भ्रमर, मयूर, चक्रवाक, उद्यान-क्रीड़ा एवं उद्यान-विहार करते हुए नर-नारियोंका चित्रण अपेक्षित है। पर्वतके वर्णन-प्रसंगमें शिखर, गुहा, बहुमूल्य रत्न, विभिन्न प्रकारकी उपत्यका, वनवासी किन्नर, झरना, गैरिकादि धातु, उच्च शिखरपर निवास करनेवाले मुनि, कुसुमोंकी बहुलता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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