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________________ १२ अलंकार चिन्तामणि सुभाषित ग्रन्थ एवं पुण्यात्मा शलाकापुरुषोंके स्तोत्रोंसे उपस्थित किये गये हैं । अतः यह ग्रन्थ भी एक प्रकारसे स्तोत्र है । " १ अनन्तर सज्जन-प्रशंसा और आत्म- लघुताका कथन आया है । आचार्य अजित - सेनने बताया है कि काव्य-रचना तो कवि करता है, पर सहृदय आलोचक उसके गुणों का विस्तार करते हैं । काव्य स्वरूपका निरूपण करते हुए लिखा है कि शब्दालंकार और अर्थालंकारोंसे युक्त, नवरस सहित, वैदर्भी इत्यादि रीतियोंके सम्यक् प्रयोग से सुन्दर, व्यंग्यादि अर्थोंसे समन्वित, श्रुति, कटु इत्यादि दोषोंसे मुक्त, प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे युक्त, नायकके चरित वर्णनसे सम्पृक्त, उभयलोक हितकारी एवं स्पष्टार्थक काव्य होता है ।" कविकी योग्यताका प्रतिपादन करते हुए बताया है कि प्रतिभाशाली विविध प्रकारकी घटनाओंके वर्णन में दक्ष, सभी प्रकार के व्यवहार में निपुण, नाना प्रकार के शास्त्रों के अध्ययनसे कुशाग्र बुद्धिको प्राप्त एवं व्याकरण, न्याय आदि ग्रन्थोंके अध्ययनसे व्युत्पत्तिमान् कवि होता है । काव्य-हेतुओंके अन्तर्गत अभ्यास, व्युत्पत्ति, प्रज्ञा एवं प्रतिभाकी गणना की है । यहाँ प्रज्ञा और प्रतिभा इन दोनोंमें अन्तर है । वर्णन - निपुणताको प्रज्ञाकी संज्ञा दी गयी है तथा कल्पना जन्य सभी प्रकारके चमत्कार प्रज्ञामें समाविष्ट हैं । प्रतिक्षण नये-नये विषयोंको कल्पित करनेकी शक्तिरूपी बुद्धिको प्रतिभा कहा है । व्युत्पत्ति अन्तर्गत छन्द-शास्त्र, अलंकार - शास्त्र, गणित, कामशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, शिल्प, तर्कशास्त्र एवं अध्यात्मशास्त्र के अध्ययन द्वारा ज्ञानार्जन प्राप्त करना व्युत्पत्ति है । अभ्यास, गुरुके समक्ष बैठकर काव्यरचना करनेकी साधनारूप है । अजितसेनने साधनाका विशेष वर्णन किया है । किन ग्रन्थोंका अध्ययन किस रूपमें अपेक्षित है इसका उन्होंने विस्तारपूर्वक विचार किया है । यति, गति, उपसर्ग, अव्यय - व्यवस्थाका भी कथन आया है | महाकाव्य के अन्तर्गत राजा, राजपत्नी -- महिषी, पुरोहित, कुलश्रेष्ठ पुत्रज्येष्ठपुत्र, अमात्य, सेनापति, देश, ग्राम, नगर, कमल, सरोवर, धनुष, नद, वाटिका, वनोद्दीप्त पर्वत, मन्त्र - शासन सम्बन्धी परामर्श, दूत, यात्रा, मृगया - आखेट, अश्व, गज, ऋतु, सूर्य, चन्द्र, आश्रम, युद्ध, कल्याण, जन्मोत्सव, वाहन, वियोग, सुरत --रतिक्रीड़ा, सुरापान एवं नाना प्रकार के क्रीड़ा - विनोद आदि विषय समाविष्ट रहते हैं । राजा वर्णनीय गुणोंमें कीर्ति, प्रताप, आज्ञा-पालन, दुष्ट-निग्रह, शिष्ट- पालन, 1 सन्धि विग्रह, यान, नीति, क्षमा, काम-क्रोधादिपर विजय, धर्मप्रेम, दयालुता, प्रजाप्रीति, शत्रुओं को जीतनेका उत्साह, धीरता, उदारता, गम्भीरता, धर्म-अर्थ-कामप्राप्ति के अनुकूल साधन, साम-दाम-दण्ड - विभेद इत्यादि उपायोंका प्रयोग, त्याग, सत्य, पवित्रता, शूरता, ऐश्वर्य और उद्योग आदि बातोंका समावेश किया है । ९. अलंकार चिन्तामणि, प्रथम परिच्छेद, पद्य-५ । २. वही, पद्य-७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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