SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० अलंकारचिन्तामणिः [३३१०व्यञ्जनानां भवेदेकद्वित्र्यादीनां तु यत्र च। पुनरुक्तिरयं वृत्त्यनुप्रासो भणितो यथा ॥१०।। ललनां कोकिलालापां सुभद्रां विद्रुमाधराम् । भरतः सुरतोद्योगी वीक्षते स्म स्मरातुरः ।।११।। स्वरव्यञ्जनयोनियमेन पुनरावृत्तिर्यमके । अनुप्रासे तु व्यञ्जनपुनरुक्तिनियमेन । स्वरपुनरुक्तिरनियमेन । अतश्च अर्थभेदनियमानियमाभ्याम् च तयो. भदः॥ इत्यनुप्रासः। श्लोकपादपदावृत्तिवर्णावृत्तिर्यताऽयुता। भिन्नवाच्यादिमध्यान्तविषया यमकं हि तत् ॥१२॥ तथा मेघके समान गम्भीर दिव्यध्वनि द्वारा दूर करनेवाले जिनेन्द्र भगवान् मेरे मनको इस जीवन में आन्दोलित करें ॥९॥ उक्त पद्यमें 'सुरा' 'सुरा' 'जिताजिता' तथा 'घना' 'घना' की आवृत्ति होनेसे छेकानुप्रास है। वृत्त्यनुप्रासका लक्षण जिस पद्यमें एक, दो और तीन आदि व्यंजन वर्णोंकी पुनरुक्ति हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास अलंकार होता है ॥१॥ वृत्त्यनुप्रास वह शब्दालंकार है, जिसमें अनेक व्यंजनों की स्वरूपतः समानता अथवा अनेक व्यंजनोंको स्वरूपतः और क्रमशः समानता हो अथवा एक वर्णको एक बार अथवा अनेक बार आवृत्ति होती है। उदाहरण सुरतके लिए उद्योग करनेवाले, कामसे व्याकुल भरतने कोयलके समान मधुर बोली वाली और प्रवाल मणिके समान लाल ओठवाली सुभद्रा रमणीको देखा ॥११॥ प्रस्तुत पद्यमें ल, ल, ला और र की आवृत्ति होनेसे वृत्त्यनुप्रास है। अनुप्रास और यमकालंकारमें भेद यमकालंकार में स्वर और व्यंजनोंकी नियमतः आवृत्ति होती है; पर अनुप्रास अलंकारमें व्यंजन वर्णों की आवृत्ति नियमतः और स्वरवर्णों की आवृत्ति अनियमतः होती है । अतः अर्थभेदके नियम-अनियमके कारण अनुप्रास और यमकमें भेद है । यमकालंकारका लक्षण ___ श्लोककी आवृत्ति, श्लोकके पादकी आवृत्ति, पदको आवृत्ति, वर्णकी आवृत्ति, भिन्नार्थ और अभिन्नार्थ श्लोकके आदि, मध्य और अन्तकी आवृत्तिसे युक्त और १. श्लोकपादपरावृत्तिः ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy