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________________ तृतीयः परिच्छेदः लाटानाम्यदि नास्ति स्वतः शोभा भूषणैः किं प्रयोजनम् । यद्यस्त्यङ्गगता शोभा भूषणैः किं प्रयोजनम् ॥६॥ छेकानाम्रमणी रमणीयाऽसौ मरुदेवी मरुन्मता। नाभिराज महानाभिमममुददनेकशः ॥७॥ केचिदेवमिच्छन्तिव्यञ्जनद्वन्द्वयोर्यत्र द्वयोरव्यवधानयोः । पुनरावर्तनं सोऽयं छेकानुप्रास उच्यते ॥८॥ सेरासुरानुवन्द्याघ्रिजिताजिततमोद्युतिः । घनाघनाभवाक्यो मे मनो मनसि चोदतु ।।९।। लाटानुप्रासका उदाहरण-- यदि स्वाभाविक सुन्दरता नहीं है तो अलंकारोंसे क्या प्रयोजन ? अर्थात् असुन्दर वस्तुकी शोभा अलंकारोंसे नहीं हो सकती है। यदि शरीरमें सौन्दर्य है तो भी अलंकारोंकी क्या आवश्यकता है ? अर्थात् आभूषणोंके विना भी सहज सुन्दर वस्तु सुन्दर प्रतीत होती है ॥६॥ पद्यकी प्रथम पंक्तिमें 'शोभा', 'भूषणः', 'कि', 'प्रयोजनम्' पदोंकी द्वितीय पंक्तिमें आवृत्ति हुई है । यहाँ शब्दों और पदोंके साम्य रहनेपर भी अर्थको भिन्नता रहने से लाटानुप्रास है । वस्तुतः इस पद्यमें पद और विभक्त्यर्थ भी आवृत्त है। छेकानुप्रासका उदाहरण देवताओं द्वारा समादृत सुन्दररमणी मरुदेवीने महानाभि महाराज नाभिराजको अनेक बार आनन्दित किया ॥७॥ इस पद्य के प्रथम पादमें 'रमणी रमणी'; द्वितीय पाद में 'मरु मरु' और तृतीय-चतुर्थपादमें 'नाभि' 'नाभि' का साम्य है । असंयुक्त व्यंजनोंका साम्य होनेसे छेकानुप्रास है। ___ कुछ आचार्य छेकानुप्रासका लक्षण और उदाहरण अन्य प्रकारसे बतलाते हैं। यथा-जिस पद्यमें व्यवधान लक्षण रहित दो व्यंजनोंकी दो बार आवृत्ति होती हो, उसे छेकानुप्रास कहते हैं ॥८॥ उदाहरण ___ देव-दानवोंसे वन्दनीय चरणयुगलवाले, अजित अज्ञानान्धकारको अपनी कान्ति १. मरुन्नुता-ख । २. सुरासुराभिवन्द्या-क तथा ख। ३. जिताजिततमोद्युतिः ख । ४ मनसिजोऽवतु ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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