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________________ अलंकार चिन्तामणिः भासते विभुतास्तोना ना स्तोता भुवि ते सभाः । याः श्रिताः स्तुतगीत्या नुनुत्या गोतस्तुताः श्रिया ।। १६२ ॥ गतप्रत्यागतार्द्धः । वर्णाः क्रमेण पठ्यन्ते पङ्क्त्याकारेण ये पुनः । त एव वैपरीत्येन गतप्रत्यागतः स च । विभुतया स्वामित्वेन अस्ताः क्षिप्ताः ऊना: न्यूनाः याभिस्ताः। ना पुरुषः स्तोता सभाः समवसृतीः । यः स्तौति स भासते । नतपाल महाराज गीत्या नुत ममाक्षर । ८६ रक्ष मामतनुत्यागी जराहा मलपातन || १६३|| गतप्रत्यागतैकश्लोकः । मम गोत्या नुत अतनुत्यागी अनल्पदाता | जहा वृद्धत्वहीनः मलपातन पापनाशक । गतप्रत्यागतार्द्ध चित्रका उदाहरण हे स्तुत! आपकी स्तुति करनेवाला पुरुष भूतलपर उन समवशरण सभाओं को पाकर अत्यन्त शोभित होता है, जो सभाएँ अष्ट महाप्रातिहार्यरूप लक्ष्मीसे सुशोभित होती हैं, संगीतमय स्तोत्रोंसे जिनका वर्णन किया जाता है, श्रेष्ठ पुरुषोंके नमस्कार से पूज्य हैं और जिन्होंने अपने वैभवसे अन्य सभाओं को तिरस्कृत कर दिया है ॥१६२३॥ यह गतप्रत्यागतार्द्धका उदाहरण है । श्लोकके अर्धभागको पंक्त्या कारसे लिखकर क्रमपूर्वक पढ़ना चाहिए । इस अलंकार में विशेषता यह है कि क्रमसे पढ़ने में जो अक्षर आते हैं, वे अक्षर विपरीत क्रम - दूसरी ओरसे पढ़ने में भी आते हैं । इसी तरह श्लोक के उत्तरार्द्ध भागको भी लिखकर पढ़ना चाहिए । गत प्रत्यागत विधि अर्धश्लोक में है, अतः यह गतप्रत्यागतार्ध अलंकार है । [ २।१६२ 'विभुतया' - स्वामिरूपसे; 'अस्ता . ' - तिरस्कृत कर दिया है, सभाओं को जिसने । 'ना' – पुरुष - स्त्रोता - स्तुति करनेवाला; 'सभा:' समवशरणभूमिः । ' य:' - जो; स्तौति - स्तुति करता है । गतप्रत्यागतैक चित्रका उदाहरण हे नम्र मनुष्यों के रक्षक ! हे मत्कृत - मेरे द्वारा का गयो, स्तुतिसे पूजित ! हे अविनाशी ! हे दुष्कर्मरूपी मलको नष्ट करनेवाले धर्मनाथ महाराज ! मेरी रक्षा कोजिए—- मुझे सांसारिक दुःखोंसे छुड़ाकर अविनाशी मोक्षपद प्रदान कीजिए । यतः आप महान् दाता हैं— सर्वोत्कृष्ट दानो हैं और जन्म-जरा आदि दोषोंको नष्ट करनेवाले हैं ॥१६३३ ॥ --- 'मम गीत्या' – मेरे स्तोत्रोंसे; 'नुत' - स्तुति से पूजित; 'अतनुत्यागी' - महान् दाता; 'जराहा'--- वृद्धत्वहीन -- जन्मजरा आदि दोषोंसे रहित; 'मलपातन'-- पापनाशक । १. सममसृती : - क । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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