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________________ -१६५] द्वितीयः परिच्छेदः वन्दे चारुरुचां देव भो वियाततया विभो। त्वामजेय यजे मत्वा तमितान्तं ततामित ॥१६॥ गतप्रत्यागतपादयमकश्लोकः ।। चारुरुचां 'शोभनदीप्तीनां नाथ । तमितः नष्टः अन्तः क्षयः यस्य तम् । ततम् उक्तम् अमितम् अमेयम् वस्तु येनासौ। मत्वा विचार्य । वियाततया धृष्टत्वेन । वन्दे यजे च त्वामित्यर्थः । पारावाररवारापारा क्षमाक्ष क्षमाक्षरा। वामानाममनामावारक्षमद्धंर्द्धमक्षर ॥१६५।। बहुक्रियापदद्वितीयपादमध्ययमकातालव्यव्यञ्जनावर्णस्वरगूढद्वितीयपादसर्वतोभद्रः । गतप्रत्यागताद्ध भ्रम इत्यष्टधा । बहुक्रियापदानि कानि ? अम अव । आरक्ष । अथ द्वितीयपादे क्षमाक्षर इत्यावर्तितम् । सर्वाणि अतालव्यव्यञ्जनानि अवर्णस्वराः सर्वे नान्यः स्वरः द्वितीयपादे यान्यक्षराणि तान्यन्येषु गतप्रत्यागतपादयमकका उदाहरण--- हे विभो ! आप उत्तम कान्ति, भक्ति अथवा ज्ञानसे सम्पन्न जीवोंके देव होउनमें अत्यन्त श्रेष्ठ हो-अन्तरंग और बहिरंग शत्रुओंसे अजेय हो, अनन्त पदार्थोंका प्ररूपण करनेवाले हो अथवा ज्ञान-दर्शनादि गुणोंसे विस्तृत और सीमारहित हो । हे पद्मप्रभदेव ! मैं आपको अन्तरहित अविनश्वर मानकर बड़ी धृष्टतासे नमस्कार करता हूँ और धृष्टतासे हो आपका पूजन करता हूँ ॥१६४३॥ प्रथमपादके चार अक्षरोंको क्रमसे लिखकर पाठ करे; पश्चात् उनका व्युत्क्रमसे पाठ करे । क्रमपाठमें जो अक्षर हैं, विपरीत पाठमें भी वे ही अक्षर रहते हैं। इसी प्रकारसे समस्त पादोंको समझना चाहिए । 'चारुरुचाम्'–उत्तम कान्तिवाले भगवान् -'तमितः'-अन्तरहित अविनश्वर; 'वियाततया'-धृष्टता से; 'वन्दे'-यजे-पूजा करता हूँ। बहुक्रियापद""स्वर-गृढ"सर्वतोभद्रका उदाहरण हे प्रभो ! आपकी दिव्यध्वनि समुद्र-गर्जनाके समान अत्यन्त गम्भीर है । आप समस्त पदार्थो के जाननेवाले हैं । पापोंके नाश करनेवाले हैं। ज्ञानादि गुणोंसे वृद्ध हैं। क्षय रहित हैं । हे भगवन् ! आपकी क्षमा अपार और अविनाशी है। अतएव आप मुझ वृद्ध को भी प्रसन्न कीजिए, सुशोभित कीजिए तथा पालित कीजिए ।।१६५३।। ___ उक्त पद्यमें 'अव', 'अम' और 'रक्षा' इन तीन क्रिया पदोंके रहनेसे बहुक्रियापद है । द्वितीयपादमें 'क्षमाक्ष, क्षमाक्ष'की आवृत्ति होनेसे द्वितीयपाद मध्य १. शोभनदीप्तिमतां नाथ -क। २. गतप्रत्यागतार्द्धभ्रम इत्यष्टया इति पाठो कप्रती नास्ति । ३. क्षमाक्ष इत्यावर्तितम् -क । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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