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[कल्याणकलिका-प्रथमखणे अनुक्रमे एकपाद द्विपाद त्रिपाद दृष्टि मानेली छे अने एज स्थानोमां अनुक्रमे शनि मंगल गुरु पूर्णदृष्टिवाला होय छे एज रीते एक स्थानमा मलेला ग्रहो एक बीजाने पूर्णपणे देखे छे अने सातमा स्थानने पण सर्वग्रहो पूर्णदृष्टिए देखे छे आ ताजिक दृष्टि कही छे.
ग्रहोर्नु बलाऽबलते स्थानबलिनोमित्र-स्वगृहोच्चनवांशगाः। स्त्रीराशिष्विन्दुभृगुजौ, पुराशिषु पुनः परे ॥६३०॥ लग्नाद्युत्क्रमकेन्द्राख्य-दिक्षु प्राच्यादिषूद्वलाः। जीवज्ञौ१ भास्करक्ष्माजौ२शनिः३ सितसितद्युती४॥६३१॥ पलिनोऽह्नि गुरुसितार्काः, सदा बुधो निशितु चन्द्रकुजमन्दाः। स्वदिनादिषु च सितासित-पक्षद्वितयेषु शुभक्रूराः ॥६३२॥ रविचन्द्रावुदगयने, विपुलस्निग्धाश्च वक्रगाश्चान्ये । वलिनो युधि चोत्तरगा, व्यर्केन्दुयुताश्च चेष्टाभिः ॥६३३॥ सोम्यैदिग्बलिनो दृष्टा, बले नैसर्गिके पुनः । मन्दारज्ञेज्यशुक्रन्दु-भास्कराः स्युर्बलोत्सराः ॥६३४॥
भा०टी०-ग्रहो मित्र-स्वगृह-उच्च-स्वनवांशकमा होय त्यारे स्थानबली होय छे, चंद्र शुक्र स्त्रीराशिओमां अने बीजा सर्वे पुरुषराशिओमा होय त्यारे पण स्थानबली होय छे, लग्नथी सृष्टिक्रमे केंद्र स्थानोमां रहेला गुरु बुध १, सूर्य मंगल २, शनि ३, चंद्र शुक्र ४, आ ग्रहो उक्तटबली होय छे, दिवसे सूर्य गुरु शुक्र बली, बुध सदा बली अने चंद्र मंगल शनि रात्रिए बली होय छे, पोताना वार होरादिमां सर्व ग्रहो बली होय छे, शुक्लपक्षमा सौम्य ग्रहो अने कृष्णपक्षमा क्रूर ग्रहो विशेष बलवान् होय छे. सूर्य चंद्र उत्तरचारी अने विपुलस्निग्धकिरणधारी होय त्यारे
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