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________________ लग्न-लक्षणम् ] ग्रहोनी दृष्टिमर्यादा पश्यन्ति पादतो वृद्धया, भ्रातृ ३ व्योम्नी १० त्रिकोणके । चतुरस्त्र ४-९ स्त्रियं ७ स्त्रोवन्, मतेनाया ११ दिमा १ वपि ५-९ ॥ ६२६॥ पश्येत्पूर्ण शनिभ्रत् ३, व्योम्नी, १० धर्म ९ धियौ ५ गुरुः । चतुरस्त्रे कुजोऽर्केन्दु बुधशुक्रास्तु सप्तमम् ।। ६२७ ।। भा०टी० हो पाद, द्विपाद, त्रिपाद, पूर्ण इत्यादि क्रमे जुदा जुदा स्थानांने जुए छे, पोते जे स्थानमा रहेल होय तेथी प्राजा दशमा स्थाने ते पावदृष्टिथी जुए छे, पांचमा नवमा स्थाने अर्धदृष्टिथी, चोथा आठमा स्थाने पोंणी दृष्टिथी अने सातमा स्थाने पूर्व दृष्टिथी सर्व ग्रहो देखे छे, कोइ आचार्यना मते अभ्यारमा भने पहेला स्थाने ब्रहोनी पूर्णदृष्टि होय छे. शनि भीजे दशमे, गुरु पांच नवमे अने मंगल चोथे आठमे स्थाने पर्ण दृष्टिए देखे छे. ज्यारे रवि सोम बुध शुक्र एक सातमाने ज पूर्ण दृष्टिए देखे छे. ताजिकोक्ता ग्रहदृष्टि 0 ५४९ तृतीयैकादशे तुर्य- दशमे नवपञ्चमे । पादवृद्धया पिबन्त्येषु, पूर्ण चाऽरिसूरयः ||६२८|| युक्ताः परस्परं पूर्ण, तद्वत्पश्यन्ति खेचराः । सर्वेऽपि सप्तमं चेति, पूर्णहरू ताजिकोदिता ॥६२९ ॥ Jain Education International भा०टी - ताजिकमां कहेल ग्रहदृष्टि केटलेक अंशे जुदो पडे छे, ताजिकना मते त्रीजे अभ्यारमे, चोथे दशमे, अने नवमे पांचने, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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