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[ कल्याणकलिका-प्रथमखणे ग्रहोनी निसर्गमत्री-मध्यस्थ-शत्रुता ज्ञापक कोष्ठकग्रहो | सूर्य चंद्र | मंगल
बुध
| गुरु शुक्र | शनि मित्र में गुसू बु | सूचंगु शु | सू चं मं बु शु बुशु
मध्यस्थ बु
मंगुशुश
शु श
में गु शु
श | मंगु गु
शत्रु | शु श | ० | बु | चं बु शु सूचं सू चं गु
ग्रहमैत्री-शत्रुता विषयक प्राचीन मतजीवो बुधेज्यौ शुक्रज्ञो, व्यी व्यारा विविन्द्विनाः। वीदिनारा इनादीनां, मित्राण्यन्ये तु शत्रवः ॥६२४॥ स्फुटो मित्रारिभावोऽयं, सर्वैरुक्तो महर्षिभिः । नवो लोकप्रसिद्धस्तु, न प्रत्यक्षफलो यतः ॥६२५॥
भाण्टी-सूर्यादि ग्रहोना मित्री अने शत्रुओ आ प्रमाणे छे-सूर्यनो मित्र गुरु, शत्रु चंद्र मंगल बुध शुक्र शनि. चंद्रना मित्रो बुध गुरु, शत्रु-सूर्य मंगल शुक्र शनि. मंगलना मित्रो-बुध शुक्र, शत्रुओ-सूर्य चंद्र गुरु शनि. बुधना मित्रो-चंद्र मंगल गुरु शुक्र शनि, शत्रु-सूर्य. गुरुना मित्रो-सूर्य चंद्र बुध गुरु शुक्र शनि, शत्रु-मंगल. शनिना मित्रो-बुध गुरु शुक्र, शत्रुओ-सूर्य चंद्र मंगल. आ प्रकट मित्र-शत्रुभाव स्पष्ट छे अने सर्व महर्षिओए करो छे, लोक प्रसिद्ध मित्र-शत्रुभाव नवो छ अने प्रत्यक्ष फल आपतो नथी.
प्राचीन मतानुसारि मैत्री-शात्रवकोष्ठकग्रहा। सू चं | मं | बु | गु | शु
चंमंगु | सचंबु बु गु मित्र गु | बु गु | बु शु
शु श | शु श |
धुगुशु चमंबु सू मं | स चं
| सू | में सू चं सच में शुश । शु श | गु श |
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