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लग्न-लक्षणम् ]
भाटी०- भद्राविनानां आ दश करणो सर्वकार्योमां विहित छे, अने रात्रि दिवसना विपर्यासथी भद्रा पण निर्दोष छे अम ज्योतिषशास्त्रना वेत्ताओ कहे छे.
लमवल प्रकरण
लग्नविधेय कार्योअभिषेको नृपतीनां, साहसकर्मादिवरोधम् । आकरधातुवादाखिलं मेषोदये कार्यम् ॥६००॥ स्थिरचरकार्य त्वखिलं, विवाहवास्त्वादि कन्यकावरणम् । क्षेत्रारम्भणमखिलं, भूषणशिल्पादि कारणं वृषभे ॥६०१॥ मेषवृषोक्तं कर्म, गजसुरगोष्ट्रादिकं च गोकर्म । अविकलमाहिषमेष-क्षितिपतिसेवादिकं मिथुने ।।६०२॥ शान्तिकपौष्ठिकमाङ्गल-जलबन्धनमोक्षमग्विलजलकर्म । दैविककूपतडागशिल्पोद्वाहादि कर्कटे कार्यम् ।।३०३।। परयोगो नृपसेवा, कृषिकर्मवणिग महाहवाद्यखिलम् । स्थिर कर्माखिलवास्तु-निवेश शिल्पादि सिंहभे कार्यम् । ६०४। __भा०टी०-राजाओनो अभिषेक, साहस कर्म आदि, विरोध. कार्य, खाण, धातुबाद, आदि सर्व मेष लग्नमां करवू. सर्वस्थिर-चरकार्य, विवाह, वास्तु आदि, कन्यावरण, क्षेत्रारंभ, सर्वभूषण तथा शिल्पादिकार्य वृषभ लग्नमां करवू. मेप वृपमा करवान कार्य, हाथी घोडा उंट गाय बलद संबंन्धी, संपूर्ण माहिषकर्म, मेषकर्म, राजसेवादिकार्य मिथुन लग्नमां करवू, शांतिक पौष्टिक मांगल्यकर्म जलवन्धन अने जलमोक्षण आदि संपूर्ण जलकर्म, दैविक, कूप, तलाव, शिल्प, विवाह आदि कर्कमां करवु. विरोधी मिलन, राजसेवा, कृषिकर्म, वाणिज्य, युद्ध आदि तथा सर्व स्थिरकर्म, सर्व वास्तुनिवेश, शिल्पादि कर्म, सिंह लग्नमां करवू,
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