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[ कल्याणकलिका-प्रथमखण्डे भा०टी० हे वत्स ! देवगणा नक्षत्रमा अने सोम बुध, गुरू शुक्रवारे जे भद्रा होय तेने 'कल्याणी भद्रा' कही छे तेमां सर्वे कामो करवां. स्वर्गेऽजोक्षणकर्केष्वधः स्त्रीयुग्मधनुस्तुले। कुंभमीनालिसिंहेषु, विष्टिमर्येषु खेलति ॥५९७॥ .
भा०टी०-मेष, वृषम, मकर, कर्कना चंद्रमां भद्रा स्वर्गमां, कन्या मिथुन धन तुलाना चंद्रमां भद्रा पातालमां अने कुंभ मीन वृश्चिक सिंहना चंद्रमां भद्रा मनुष्य लोक खेले छे, तात्पर्य ए छे के जे काले भद्रा जे लोकमां वसती होय छे ते काले ते लोकमां ज भद्रा पोतार्नु शुभाशुभ फल आपे छ, आधी फलित थयु के मनुष्य लोक. मां सिंह वृश्चिक, कुंभ, मीनना चन्द्रमा ज भद्रानो विचार करवो रह्यो, स्वर्ग पातालमां भद्रावास होय त्यारे मनुष्य लोकमाए पोतानो प्रभाव बतावी शकती नथी.
कालपरक भद्रानां बे स्वरूपोसर्पिणी वृश्चिकी भद्रा, दिवारान्योः स्मृताः क्रमात् । सर्पिण्या वदनं त्याज्यं, वृश्चिक्याः पुच्छमेव च ॥५९८॥
भाल्टी--दिवस रात्रिनी भद्रा अनुक्रमे सर्पिणी (सापण) अने वृश्चिकी (विछुडी) कहेल छे, माटे सापणर्नु मुख वर्जवं अने विछुडीनुं पुंछडु वर्जq, आनो तात्पर्यार्थ ओछे दिवसमां भद्रा क्रमागत होय के अक्रमागत होय पण तेना मुख विभागनी घडीओ तो अवश्य वर्जवी ज जोइये, अज प्रमाणे रात्रिमां भद्राना पुछडानो त्याग अवश्य करवो, भले ते तिथिना पूर्वार्ध प्रतिबद्ध होय के परार्ध प्रतिबद्ध.
करणो विषे आरंभसिद्धिकारनो उपसंहारदशाऽमूनि विविष्टीनि, दिष्टान्यखिलकर्मसु । राश्यहव्यत्ययाद् भद्रा, ऽप्यदुष्टैवेति तदिदः ॥५९९।।
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