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________________ ५४४ [कल्याणकलिका-प्रथमवणे भूषणमङ्गलकार्य-मौषधविज्ञानपुण्यशिल्पादि। उदाहशान्तिपौष्टिक-गजतुरगोष्ट्रादि कन्यायाम् ॥६०५॥ कन्योक्ताखिल काय, तुलादिमानानि भाण्डकर्माणि । यात्रावास्तुविघानं, तौलिनि कृषिकर्मवाणिज्यम् ॥६०६॥ साहसदारुणचित्रक-लेखकवास्तूग्रशास्त्रकर्माद्यम् । आहवकृषिवाणिज्य, क्षितिपतिवादश्च वृश्चिके कार्यम्॥ ॥६०७॥ शान्तिक पौष्टिक शिल्पिक-सन्धानावादिनृत्यगीताद्यम् । राजोपकरणमखिलं, भूषणवास्त्वादि चापभे सेवा ॥६०८॥ शंबरमोचनबन्धन-भूषणरत्नादि शिल्पधान्यादि। क्रयविक्रयमखिलं यद् , रिपुहनोद्योगमाहवं मकरे ॥६०९॥ भा०टी०-आपण मंगल औषध विज्ञान पुण्य शिल्प आदिनां कार्यो, विवाह शांतिक पौष्टिक कर्मो, हाथी घोडा उंट संबंधी कार्य कन्यामां करवं. कन्या लग्नमां करवानां सर्व कार्यो, तुलादिमानो, मांडकर्मों, यात्रा, वास्तुनिर्माण, कृषिकर्म, वाणिज्यकर्म एतुलालग्नमां करवा. साहसनां कामो, दारूणकर्म, चित्रकार लेखक वास्तु संबन्धी कामो, उग्र शास्त्रकर्म आदि, युद्ध कृषि वाणिज्य अने राजकीय विवाद वृश्चिकमां करवा. शान्तिक पौष्टिककर्म, शिल्पिकार्य, संधान, अश्वादिनृत्य, गीत आदि, सर्व राजोपकरणो, भूषणकर्म, वास्त्वादि कर्मो धनुलग्नमां करवां. जल छोडवू, जल रोक, भूषण रत्नादिधारण, शिल्प, धान्यादिकार्यो, क्रय विक्रय संबन्धी सर्वकार्यों, शत्रु उपर घावी करवानो उद्यम, युद्ध इत्यादि कार्यो मकर लग्नमां करवा. युद्धोपकरणभूषण-जलधान्यशिल्पाश्च गोधनाचं यत् । पण्यासवपुर नगर-प्रवेशनं कर्म घटलग्ने ॥६१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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