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[कल्याणकलिका-प्रथमखण्ड अशुभयोग कोष्ठकसो मं | बु गु शु श
योग
वारें
नक्षत्र
|वि | पूषा|ध | रे
रो | पुष्य उफा उत्पात
नक्षत्र | अनु| उषा| श | अ | मृ
आरले ह | मृत्यु
नक्षत्र | ज्ये अभि | पूभा भ आर्द्रा मचि | काण
-
-
नक्षत्र
म | वि आद्रा मू| क| रो| ह यमघण्ट
क्रकच
वज्रनक्षत्र | भ ! चि | उषा| ध उफा ज्ये | रे
मुसल तिथि १२ | ११ | १०| ९ | ८ | ७ | ६ | क्रकच
अशुभयोगोनो परिहार मृत्यु-क्रकच-दग्धादी-निन्दौ शस्ते शुभाजगुः । केचिद्यामोत्सरं चान्ये, यात्रायामेव निन्दितान् ॥४५४॥
भा०टी०-मृत्यु, क्रकच, दग्ध आदि अशुभयोगो चन्द्र शुभ होय तो अशुभ नथी एम केटलाक विद्वानो कहे छे ज्यारे बीजाओ कहे छे के मृत्यु क्रकचादि योगो (दक्षिण उत्तर दिशाए) यात्रामा ज अशुभ गणाय छे.
अयोगे सुयोगोपि चेत्स्यात्तदानीं, कुयोग निहत्यैष सिद्धिं तनोति। परे लग्नशुद्धया कुयोगादिनाशं,
दिनार्दोत्तरं विष्टिपूर्व च शस्तम् ॥४५५॥ भा०टी०-कुयोगमा शुभयोगो मेगा होय तो कुयोगनो नाश करी सुयोग कार्य सिद्धि करे छ, अन्य आचार्यों कहे छे के लग्नशुद्धिथी
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