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________________ योग-लक्षणम् ] अष्टम्या रोहिणीयुक्ता, योगो ज्वालामुखाभिधः। त्याज्योऽयं शुभकार्येषु, गृह्यते त्वशुभे पुनः ॥४५१॥ एकादश्यामिन्दुवारो, द्वादश्यामर्कवासरः । षष्ठयां वृहस्पतेर्वारस्तृतीया बुधवासरे ॥४५२॥ अष्ठमी शुक्रवारे तु, नवमी शनिवासरे । पश्चमी भौमवारे च, दग्धयोगाः प्रकीर्तिताः ॥४५३॥ भाण्टी०--उत्तरात्रय सहित चतुर्थी, मघा युक्ता पंचमी, अनुराधा सहित तृतीया, कृत्तिका युक्त नवमी, रोहिणी युक्त अष्टमी हाय तो 'ज्वालामुख' नामक योग उत्पन्न थाय छे. आ योग शुभ कार्योमा वर्जवो अने अशुभमां लेवो. एकादशीओ सोमवार, द्वादशीथे रविवार, षष्ठी गुरुवार, तृतीया बुधवार, अष्टमीए शुक्रवार, नवमीए शनिवार अने पंचमीए मंगलवार आवतां दग्ध योग बने छ एम शास्त्र कहे छे. शुभयोग-कोष्ठक | सूर्यनक्षत्रात् ४।६।९।१०।१३।२० तमे चन्द्रनक्षत्रे-रवियोग सो मंबु शु वारे १।५।६।१०।११। अरो-पुन म-ह-वि-मू-श्र-पूमा कुमार० सू मंबुशुवारे २।३।७।१२।१५ तिथि-भ मृापूफाचि अनु-पूषा धउभा-राज० रवि-हस्त, सो-मृ, मं-अश्वि, बु-अनु, गु-पु, शु-रे, श-रो, अमृत सिद्धि | र-मू , चं-श्र, मं-उभा, बु-कृ, गु-पुन, शु-रे, शनि रो, सिद्धियोग गु-सवारे, ४-८-९-१३-१४ तिथि, कृ आ आश्लेउफास्वाज्ये उपाश रे स्थिरयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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