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[ कल्याणकलिका - प्रथमाण्डे
वज्रपातयोग
वज्रपातं त्यजेद् द्वित्रि - पञ्चषट्सप्तमे तिथौ । मैत्रेऽथ त्र्युत्तरे पैत्र्ये, ब्राह्मे मूलकरे क्रमात् ॥४४७|| भा०टी० बीज त्रीज पांचम छठ सातभ तिथिए अनुक्रमे अनुराधा, त्रण उत्तरा, मघा, रोहिणी अने मूल तथा हस्त नक्षत्र आवत वज्रपातनामक योग बने छे जे वर्ज्य छे.
संवर्तकयोग
प्रतिपत्रित सौम्ये, सप्तम्यां शनि-जीवयोः । षष्ठयां गुरौ द्वितीयायां, शुक्रे संवर्तको भवेत् ॥४४८|| भा०टी० - प्रतिपदा द्वितीया तृतीया आ तिथिओए बुधवार होय, सप्तमी शनि अथवा गुरुवार होय, पष्ठीए गुरुवार होय अथवा द्वितीयातिथिए शुक्रवार होय तो संवर्तक योग उपजे छे ते वर्जित करवो.
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कालमुखी तिथि -
उत्तर पंचमीमघा, कित्तियनवमीइ तइयअणुराहा । पंचमी रोहिणीसहिया, कालमुही जीवनाशयरी ||४४९ ॥ भा०टी० - चतुर्थी उत्तराफाल्गुनी उत्तराषाढा अने उत्तराभाद्रपदा सहित होय. पंचमी मघा सहित, नवमी कृत्तिका सहित, तृतीया अनुराधा सहित अने पंचमी रोहिणी सहित होय तो ते कालमुखी तिथि गणाय छे. जे जीव नाश करी छे.
ज्वालामुख तथा दग्धयोग
चतुर्थी चोत्तरायुक्ता, मधायुक्ता तु पञ्चमी । तृतीययाऽनुराधा च, नवम्या सह कृत्तिका ||४५० ॥
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१ आरंभसिद्धिवार्तिकमां पाठान्तर नीचे मुजब छे अट्ठमि रोहिणी सहिया, कालमुद्दी जोगिमास छगिमच्चू ||
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