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योग- लक्षणम् ]
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रोहिणीथी उत्पातादि त्रण, शुक्रवारे पुष्यथी उत्पातादि त्रण अने शनिवारे उत्तराफाल्गुनीथी उत्पातादि त्रण योगो थाय छे ते स्वयं नाणी सेवा.
यमघण्टायोग
मघा - विशाखार्द्रामूलकृतिका - रोहिणी - करैः । रव्यादिवार संयुक्त-र्यमघण्टो भृशाशुभः ॥ ४४४ ॥
भा०टी० - मघा विशाखा आर्द्रा मूल कृत्तिका रोहिणी हस्त आ नक्षत्रो अनुक्रमे रवि सोम मंगल बुध गुरु शुक्र शनिवारे आवे तो यमघंट नामक योग बने छे जे घणो ज अशुभ होय छे. वज्रमुसल योग —
याम्य-चित्रोत्तराषाढा, वासवार्यमशाक्रभैः । रेवती सहितैर्वज्र - मुसलोर्कादिवारगैः ॥ ४४५॥ भा०टी० - भरणी, चित्रा, उत्तराषाढा धनिष्ठा उत्तराफाल्गुनी ज्येष्ठा रेवती आ सात नक्षत्रो अनुक्रमे रवि सोम मंगल बुध गुरु शुक्र शनिवारे आवे तो वज्रमुसल योग उपजे छे, आ योगनुं बीजुं नाम ग्रहजन्मनक्षत्र योग छे.
क्रकच योग
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यत्र संख्यायुतौ वार-तिथ्योर्जातास्त्रयोदश । ज्ञेयः क्रकचयोगोऽयं, हेयश्च शुभकर्मसु ॥४४६ ॥
भा०टी० – ज्यां वार तिथिना अंकने जोडतां जो १३ नी संख्या थाय तो जाणवुं के ते दिवसे क्रकच योग छे, रवि बारस, सोम अग्यारस, मंगल दशम, बुध नवमी, गुरु अष्टमी, शुक्र सप्तमी अने शनि षष्ठीना आंकोनी संख्या १३ आवे छे एटले आ वार अने तिथिओना योगे क्रकच योग बने छे आ क्रकचयोग शुभ कार्योंमां
वर्जवो जोइये.
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