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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे ए विषयमा पाकश्री ग्रन्थमा ओ प्रमाणे लखेल छे. अणमण-खिल-वाहि-रिण रिउ रण-दिव्व-जलासए बंधो। कायव्यो थिरजोगे, जस्स य करणं पुणो णत्थि ॥ ४४२॥ __ भा०टी०-अनशन, क्षेत्रशोधन, व्याधिनो प्रतिकार, शत्रुनो प्रतिकार, रिण चुकाव, युद्ध, दिव्य-कोशपानादि करवं, जलाशय बांधवो ए सर्व कार्यों अने जे कार्यों फरी करवानां न होय तेवा सर्व कार्यों स्थिर योगमा करवा. ___उक्त कार्यो के ते प्रकारना ज बीजां कार्योमां ज आयोगलेवो पण बीजा कार्योमां-खास करीने शुभ कार्योमां-जे वार बार करवानां होय तेषां विवाह, प्रतिष्ठा, दीक्षा, आदिमां ए योग वर्जवो आ स्थविर योग शुभ नथी तेम अशुभ पण नथी तेथी शुभयोगोना अन्ते अने अशुभ योगोना प्रारंभ पूर्व लख्यो छे.
प्रकीर्ण अशुभ योगोउत्पात-मृत्यु-काण-योगोराधाव्यवासवात् पौष्ण-ब्राह्मज्यार्यममात क्रमात । त्रिषुत्रिष्वर्कतो योगा, उत्पात--मृत्यु-काणकाः। ४४३ ॥
भा०टी०-विशाखा, पूर्वाषाढा, धनिष्ठा, रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, आ सात नक्षत्रोथी शरु थतां त्रण त्रण नक्षत्रो अनुक्रमे रवि सोम मंगल बुध, गुरु, शुक्र, शनिवारे आवतां क्रमेण उत्पात मृत्यु काण, ए त्रण त्रण योगो उपजे छे. जेम के रविवारे विशाखा होय तो उत्पात, अनुराधा होय तो मृत्यु, ज्येष्टा होय तो काण, सोमवारे पूर्वाषाढाए उत्पात, उत्तराषाढा ए मृत्यु. अभिजिते काण, मंगलवारे धनिष्टाए उत्पात, शतभिषाए मृत्यु, पूर्वाभाद्रपदाए. काण, एज प्रमाणे बुधवारे रेवतीथी उत्पातादि त्रण, गुरुवारे
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