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योग-लक्षणम् ]
भाटी०-अमृतसिद्धियोग नियमपूर्वक सर्व अशुभ योगोनो विनाश करे छे पण वैधृति, विष्टि (भद्रा) अने व्यतिपातना दोषने हणवाने ए. पण समर्थ थतो नथी.
५ सिद्धियोग मूलश्रुत्युत्तराभाद्र-कृत्तिकादित्यभाग्यभैः । सस्वातिकैः क्रमात् सिद्धि-योगाः सूर्यादिवारगैः॥४३९।। __ भाण्टी -मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपदा, कृतिका. पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी अने स्वाति ए नक्षत्रो अनुक्रमे रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु. शुक्र शनिवारे आवे तो सिद्धियोग उपजे छे, रविए मूल, मोमे श्रवण, मंगले उत्तराभाद्रपदा, बुधे कृतिका, गुरुए पुनर्वसु, शुक्र रेवती, शनिए रोहिणीथी वनता सिद्धियोगो बीजे नंबरे अमृतसिद्धि जेवा छे.
६ स्थिरयोगस्थिरयोगः शुभो रोगो च्छेदादौ शनिजीवयोः । त्रयोदश्यष्टरिक्तासु, द्वयन्तः कृत्तिकादिभैः ॥४४०॥ __ भा टी०-शनि, गुरुवार, तेरस, अष्टमी, चोथ, नोम, चौदश तिथि अने कृतिका, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तराफाल्गुनी, स्वाति, ज्येष्ठा, उत्तराषाढा, शतभिषा, रेवती, आ नक्षत्रोना योगथी स्थिर योग बने छ, आ योग रोगनिवृत्ति आदिना कामोमां शुभ गणाय छे.
स्थिरयोगनो विषयअपुनःकरणं येषा-मनशन-संग्राम-वैरमुख्यानाम् । अर्थास्त एव कार्या, विवुधैरनिशं स्थविरयोगे ॥ ४४१ ॥
भा टी-जे कामो फरीथी करवा जेवां न होय तेज कामो विद्वानोए स्थविर (स्थिरयोगर्नु वीजुं नाम) योगमां करवां, जेवां के अनशन (अन्त समयनो आहार त्याग ) युद्ध, वैरभाव प्रमुख.
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