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________________ ५०२ [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे रविजोगराजजोग-कुमार जोगेसु सुद्धदिअहे वि। जं सुहकलं कीरइ, तं सव्वं बहु फलं होइ ॥ ४३५॥ ___ भा०टी०--रवियोग राजयोग अने कुमारयोगोमां अने शुद्ध दिवसे जे शुभ कार्य कराय छे ते सर्व घणुंज सफल थाय छे, अहियां शुभ कार्य तरीके लघु-क्षिप्र नक्षत्रोमां करवानां कार्यों, मांगल्य कार्यों, धार्मिक क्रियाओ, पौष्टिककार्यों, क्षेत्रारंभ, गृहारंभनिर्माण, भूषणपरिधान आदि कार्यों करवा. ४ अमृतसिद्धियोगहस्त-सौम्याऽश्विनीमैत्र-पुष्य-पौष्ण विरश्चिभैः । भवत्यमृतसिद्धयाख्यो, योगः सूर्यादिवारगैः ॥४३६॥ भा०टी०-रविवारे हस्त, सोमवारे मृगशिरा, मंगलवारे अश्विनी, बुधवारे अनुराधा, गुरुवारे पुष्य, शुक्रवारे रेवती अने शनिवारे रोहिणी वडे अमृतसिद्धिनामनो योग बने छे. अमृतसिडिनु बलभद्रासंवर्तकाद्यैश्च, सर्वदुष्टेपि वासरे। योगोऽस्त्यमृतसिद्धयाख्यः, सर्वदोषक्षयस्तदा ।। ४३७ ।। भाण्टी०-भद्राकरण, संवर्तकादि अशुभ योगोथी सर्वप्रकारे दुषित थयेल दिवसे पण जो अमृतसिद्धि योग छे तो सर्व दोषोनो क्षय थइ जाय छे. आ वचन अमृतसिद्धिनुं प्राशस्य बतावे छे, वास्तवमां भद्रा, व्यतिपात, वैधृत जेवा सर्वघातक योगोनुं बल हटाववानी शक्ति अमृतसिद्धिमा पण नथी, आ संबंधमां ग्रन्थान्तरमां कडं छहन्त्यमृताख्यो योगः, सर्वाण्यशुभानि लीलया नियतम् । न भवति पुनरिह शक्तो, वैधृतिविष्टिव्यतीपाते ॥४३८।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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