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________________ ५०० [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्ड तो त्या कुयोगना प्रभावने दूर करी सिद्धियोग पोताना प्रभावने प्रगट करे छे. प्रकीर्णक शुभयोगो १ रवियोग योगो रवेर्भात् कृततर्क नन्द-दिग्विश्चविंशोडषु सर्वसिद्धयै आयेन्द्रियाऽश्वद्विपरुद्रसारी- राजोडुषु प्राणहरस्तु हेयः ॥४२९॥ भान्टी -रविनक्षत्रथी ४।६।९।१०।१३।२० एटला, चन्द्रनक्षत्र आवतां सर्व कार्य सिद्धिकारी रवियोग बने छे अने मूर्य नक्ष थी जो १।५।७।८।११।१५।१६ आटलामुं चन्द्रनक्षत्र होतां जे रवियोग वने छे ते प्राणहानि करे छे, जे त्याज्य छ रवियोग फलइक्कस्स भये पंचाणणस्स, भजति गयघडसहस्सं । तह रवि जोगपणट्ठा, गयणमि गहा न दीसंति ।' ४३० ।। एआण फलं कमसो, विउलं सुक्खं जओ य सत्तूणं । लाभो य कजसिद्धी, पुत्तुप्पत्ती य रजं च ॥४३१ ।। भान्टी०-एक सिंहना भयथी जेम हजार हाथीओनी घटा भागे छ तेम रवियोगथी आकाशमां भागेला ग्रहो दृष्टिगोचर थता नथी. आ रवियोगोनुं फल अनुक्रमे आ प्रमाणे छे-४ था रवियोगथी यतुं मुख, ६ट्ठाथी शत्रुओनो विजय, ९माथी लाभ-धनप्राप्ति, १० माथी इष्ट कार्य सिद्धि, १३ माथी पुत्रोत्पत्ति अने २० मा रवियोगथी राज्यमाप्ति सुधिनुं फल मले छे. __२ कुमारयोगयोगः कुमारनामा, शुभः कुजज्ञेन्दुशुक्रवारेषु । अश्व्यायै वर्धन्तरितैर्नन्दा-दश पञ्चमीतिथिषु ॥४३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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