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योग-लक्षणम्
भा०टी०-रविवारे अश्विनीथी, सोमे मृगशिराथी, भौमे आश्लेषाथी, बुधे हस्तथी, गुरुवारे अनुराधाथी, शुक्रे उत्तराषाढाथी, शनिवारे शतभिषायी गणतां दिननक्षत्र जेटला, थाय तेटलामो ते दिवसे आनन्दादि योग छे एम जाणवू, प्रश्न-आश्विन शुदि १० गुरुवारे श्रवण नक्षत्र छे तो ते दिवसे आनन्दादि योग कयो होवो जोइए ? उत्तर-गुरुवार होवाथी अनुराधाथी अभिजित् सहित गणतां श्रवण ७ मुंछ माटे ते दिवसे आनन्दादि पैकीनो ७ मो 'ध्वन' योग छ एम जाणवू. एज प्रमाणे दरेक वारे उपर्युक्त नियतनक्षत्रथी दिननक्षत्र पर्यन्त गणीने आनन्दादि योगी जाणी शकाय छे. आनन्दादि योगो पैकीना अशुभयोगोनी वयं घडी
ध्वाक्षे बजे मुद्गरे चेषु नाड्यो। वा वेदाः पद्मलंबे गदेऽश्वाः । धूम्र काणे मौसले भूवयं हे।
रक्षोमृत्यूत्पोतकालाश्च सर्वे ॥ ४२७॥ भा०टी०-ध्वांक्ष, वज्र अने मुद्रनी पहेली ५ घडीओ वर्जवी, पटुंबकनी ४-४ घडीओ, गदनी ७ घडीओ, धूम्रनी १, काणनी २, अने मुसलनी २ घडीओ वर्जवी ज्यारे राक्षस मृत्यु, उत्पात, अने कालदण्ड आ योगो संपूर्ण वर्जवा. आरंभसिद्धिकार अशुभयोगोनो परिहार कहे छेसिद्धियोगः कुयोगश्च, जायेतां युगपद्यदि । कुयोगं तत्र निर्जित्य, सिद्धियोगो विजृम्भते ॥४२८॥
भाण्टी-सिद्धियोग (रवि, राज, कुमार, अमृतसिद्धि आदि कार्यसाधक योगो पैकीनो कोइ पण एक) अने कुयोग (मृत्यु, उत्पात राक्षस, यमघंट आदि वर्जित योग) जो एक साथे आवे
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