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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्? स्त्रीपुंसयोरायुरसौम्यवेधः,
सौम्यव्यधो हन्ति सुखानि शश्वत् ॥३४६॥ भाटी०-ते पंचशलाकाना अभिन्न अग्रभाग पर रहेल ग्रह संपूर्ण विवाह नक्षत्रनो वेध करे तो क्रूरवेध स्त्रीपुरुषना आयुष्यनो नाश करे छे अने सौम्यनो संपूर्ण (पाद) वेध तेमना सुखोनो नाश करे छे.
वेध अने तेनो अपवाद
वसिष्ठनो मतपाद एव न शुभः शुभग्रहै-विद्ध इत्यखिलशास्त्रमतं हि । क्रूरविद्ध मखिलं न शोभनं शोभनेषु सकलं न पादतः ॥३४७॥ ___भाण्टी-शुभ ग्रहोथी वेधायेल नक्षत्रनो एकपाद ज शुभदायक नथी ए सर्वशास्त्रोनो मत छे, ज्यारे क्रूरविद्ध नक्षत्र संपूर्ण अशुभ होइ शुभ कार्योमा पादमात्र नहि पण पूरुं नक्षत्र त्याज्य छे.
वैद्यनाथ कहे छेवेधमाद्यन्तयोरञ्यो-रन्योन्यं दितृतीययोः॥ करैरपि त्यजेत्पादं, केचिदूचुर्महर्षयः॥३४८॥ - भा०टी०–केटलाक ऋषिओ कहे छे के प्रथम अने चतुर्थ तथा बीजा अने त्रीजा चरणनो क्रूरग्रह वेध करतो होय तो पण विद्ध चरणनो ज त्याग करवो संपूर्ण नक्षत्रनो नहिं.
__ वसिष्ठ वेध दोषनो भंग कहे छलग्ने शुभो सोम्ययुतेक्षितो वा, लग्नाधिनाथो भवगस्तथा वा। कालाख्यहोरा च तथा शुभस्य,
भवेधदोषस्य तदा विभंगः ॥३४९॥ भा०टी०-लग्नमां शुभग्रह होय, लग्नपति सौम्ययुत या सौम्यदृष्ट होय, अथवा लगपति अग्यारमा भवनमां बेठो होय अने शुभग्रह
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