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नक्षत्र-लक्षणम् ] चोथा चरणनो, बीजाथी त्रीजानो, त्रीजाथी बीजानो अने चोथाथी पहेला चरणनो वेध करे छे.
पंचशलाका वेध विवाहमा वर्जित छे अने उपर बतावेल ८ नक्षत्र युग्मोमां विवाहोपयोगी बधां नक्षत्रो आवी जाय छे तेथी उपरोक्त काव्यमां बीजा नक्षत्र युग्मोनो निर्देश कर्यों नथी.
वेधफलं-फलप्रदीपेअर्कवेधे च वैधव्यं, चन्द्रवेधे वियोगिनी। पुत्रशोकातुरा भौभे, वुधे शोकाकुला भवेत् ॥३४३॥ गुरौ वन्ध्या विजानीयात्, शुक्रे स्याद् व्यभिचारिणी । मृतवत्सा शनौ ज्ञेया, राहौ च कुलटा भवेत्॥ केतुवेधे सर्वनाशो, एवं वेधस्य लक्षणम् ॥३४४॥
भा०टी०- सूर्यवेधथी वैधव्य, चन्द्रवेधथी वियोग, मंगल वेधथी पुत्रशोक, बुधवेधथी शोक, गुरुवेधथी वन्ध्यापणुं, शुक्रनावेधथी ब्यभिचार, शनिना वेधथी मृतवत्सापणुं राहुना वेधथी कुलटापणुं अने केतुना वेधथी सर्वनाश थाय छे. ए वेधनुं लक्षण छे.
पंचशलाका वेधनुं गर्ग फल कहे छयस्मिन् शशी पञ्चशलाकभिन्नः पापैरपापैरथवा विवाहे । तेनैव वस्त्रण विरोदमाना, स्मशानभूमिं प्रमदा प्रयाति॥३४५।।
भाण्टी-जे विवाहमा चन्द्र पापग्रहो वडे अथवा सौम्यग्रहोवडे पंचशलाका चक्रमां विद्ध थाय छे ते विवाहमा विवाहिता स्त्री विवाहना ज वस्त्रमा रडती श्मशानभूमिमां जाय छे. तात्पर्य ए छे के तेना पतिनुं जल्दी मरण थाय छे.
विवाहवृन्दावने पादवेध फलतस्मिन्नभिन्नाग्रगते भिनत्ति, ग्रहो विवाहक्षमशेषमेव ।
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