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________________ L [ कल्याण- कलिका - प्रथम - खण्डे पञ्चशलाका वेधचक्र नारदीये तिर्यक् पश्चोर्ध्वगाः पञ्च, रेखे द्वे द्वे च कोणयोः । द्वितीयशंभुकोणेग्नि-धिष्ण्यं चक्रे च विन्यसेत् ॥ भान्यतः साभिजिवेके रेखाकोणे च विद्धभम् ||३४१ ॥ भा०टी० तिर्यक ( आडी ) ५ अने उभी ५ रेखा खची खूणाओमां २+२ रेखाओ खेचवाथी पंचशलाका चक्र वनशे, चक्रना ईशान कोणनी बीजी रेखा उपर कृत्तिका लखी ते पछीनी प्रत्येक रेखा उपर रोहिणी आदि १-१ नक्षत्र लखवु नक्षत्रो अभिजित् सहित लखवां, एक रेखा के एक कोणमां कोइ ग्रह होय तेथी रेखाना बीजा छेडा उपरनुं नक्षत्र विद्व थाय छे. 1 कोनो कोनो परस्पर वेध थाय छे ? वेधोऽन्योन्यमसौ विरञ्च्यभिजितोर्याम्यानुराधर्क्षयोः । विश्वेन्द्रोर्हरिपित्र्ययोर्ग्रहकृतो हस्तोत्तराभाद्रयोः । स्वाती वारुणयोर्भवेन्निऋतिभादित्योस्तथोफाल्गयोः । खेटे तत्रगते तुरीयचरणाद्योर्वा तृतीयद्वयोः ॥ ३४२ ॥ भा०टी० - पंचशलाका चक्रमां विवाह नक्षत्रोनो वेध परस्पर आ प्रमाणे थाय छे - रोहिणी - अभिजितनो, भरणी - अनुराधानो. मृगशिर - उत्तराषाढानो, मघा-श्रवणनो, हस्त-उत्तराभाद्रपदनो, स्वाति शतभिषानो, पुनर्वसु-मूलनो तथा उत्तराफाल्गुनी - रेवतीनो परस्पर ग्रहकृतवेध थाय छे, एटले के रोहिणी उपर रहेल शुभाशुभ ग्रह अभिजितनो अथवा अभिजित् उपर रहेल रोहिणीनो वेध करे छे ए ज प्रमाणे उपर्युक्त नक्षत्रोनो वेध जाणवो, क्रूर ग्रह विद्ध नक्षत्र तो संपूर्ण त्याज्य गणाय छे, पण सौम्य ग्रहविद्वनो विद्व चरण त्याज्य होवाथी चरण वेधनो प्रकार कहे छे के ग्रह प्रथम चरण उपरथी संमुख नक्षत्रना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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