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प्रस्तावना] दुर्बोधनो अबोध बनी जाय छे, गवर्मेंटनी सिरीजोमां अने सारी संस्थाओ तरफथी बहार पडेला शिल्पग्रन्थो पण एटला बधा अशुद्ध होय के तेनी ज्ञात अशुद्धिओन शुद्धिपत्रक बनावीये तोये हजारोथी गणाय एटली अशुद्धिओनी संख्या तो सहजे थइ ज जाय, प्रासादादिवास्तु शिल्पिओ परम्परा प्राप्त आम्नायथी भले काम करी ले छे पण तेमनी पासे ए विषयना जे ग्रन्थो होय छे अथवा तेमने ए विषयना जे कोइ संस्कृत श्लोको कंठाग्र होय छे तेने तो अशुद्धिओना ढगला कहीये तोये कंइ अजुगतुं नथी, जे विषयना साहित्यनी आवी दशा होय ते विषयमा कंइ पण लखवू ए केटलुं मुश्केल होय छे एनो खरो अनुभव तो भुक्तभोगी ज जाणी शके. . प्रस्तुत खण्डान्तर्गत शिल्पना परिच्छेदो लखवामां अमे जे ग्रन्थोनो उपयोग कर्यों छे तेमां प्रमुख ग्रन्थो ए छे-अपराजितपृच्छा १, प्रासादमंडन २, वास्तुमंजरी ३, वास्तुसार ४, समरांगणसूत्रधार५, वास्तुविद्या ६, शिल्परत्न ७, काश्यपशिल्प ८, मयमत ९, रूपमंडन १०, देवतामूर्तिप्रकरण ११, राजवल्लभवास्तुक १२, शिल्परत्नाकार १३, विश्वकर्मविद्याप्रकाश १४, वृहत्संहिता १५, प्रतिमालक्षण १६, निर्वाणकलिका १७ इत्यादि.
१पुनरुक्तिप्रासाद लक्षणमां अमने बे स्थले पुनरूक्ति करवी पडी छे, दंड लक्षण अने कलश लक्षण लखाइ गया पछी प्रासादलक्षण लखतां जणायुं के प्रासाद लक्षणमां ज्यारे बधा अंगोनुं निरुपण थयुं छे तो दंड कलशोनुं स्थान शून्य रहे ए ठीक नहिं, जो कलश लक्षण अने दंड लक्षण आमां आवी जाय तो 'प्रासाद लक्षण' एक स्वतंत्र ग्रन्थ बनी जाय, आ विचारणा युक्ति संगत जणातां अमोए उक्त बे विषयो प्रासादलक्षणमा दाखल कर्या छे आ एक प्रकारनी
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