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________________ [ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे "बिम्बं महत् सुरूपं, कनकादिमयं यः खलु विशेषं । नाऽस्मात् फलं विशिष्टं, भवति तुतदिहाशयविशेषात् ।। आगमतन्त्रः सततं, तद्वद् भक्त्यादिलिंगसंसिद्धः। चेष्टायां तत्स्मृतिमान् , शस्तः खल्वाशयविशेषः । एवंविधेन यबिम्ब-कारणं, तद्वदन्ति समयविदः । लोकोत्तरमन्यदतो, लौकिकमभ्युदयसारं च ॥" __ अर्थ-बिंब म्होर्से छे के न्हा, ते रूपवान छे के साधारण, ते सोनानुं छे के अन्य द्रव्यनिष्पन्न इत्यादि जे विशेषो होय छे तेथी फल विशिष्ट थतुं नथी परन्तु आशय विशेषथी फलमां विशिष्टता आवे छे, जे आगमनी आज्ञाने अनुसरनार होय, भक्त्यादि लक्षणो वडे सिद्ध थतो होय, प्रत्येक प्रवृत्तिमां तेना स्मरणवालो होय ते आशय विशेष गाय छे के जेथी फलनी विशिष्टता सिद्ध करे छे. आवा आशयथी बिंब कराव ते लोकोत्तर बिम्ब होय छे अने आथी बीजी रीते बिंब बनावाय छे ते लौकिक होय छे लौकिक बिंब अभ्युदयसार एटले करावनारनी उन्नति करनारुं होय छे. "कृषिकरण इव पलालं, नियमादत्रानुषङ्गिकोभ्युदयः । फलमिह धान्यावाप्तिः, परमं निर्वाणमिव बिम्बात् ॥” अर्थ-कृषि करवामां चारानी जेम विम्बनिर्माणमां अभ्युदय ए अवश्यभावी प्रासंगिक फल छे, अने कृषिनु मुख्य फल धान्यनी प्राप्ति होय छे तेम विम्ब कराववानुं उत्कृष्ट-मुख्य फल मोक्ष प्राप्ति छे. ग्रन्थना संबन्धमांउपर शिल्पना संबन्धमां थोडीक चर्चा कर्या बाद हवे आ ग्रन्थने लगती बे वातो चर्चीने उपोद्यातनी समाप्ति करीशुं. शिल्प शास्त्र जेटलं उपयोगी छे तेटलं ज दुर्बोध छ साथे ज ए विषयगें उपलब्ध साहित्य एटलं बधुं अशुद्ध छे के जेने लीधे विषय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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