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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे पुनरुक्तियो छ ज पण स्वतंत्र परिच्छेदो सविस्तर होइ विशेष उपयोगी जाणी कायम राख्या छे,
२ ज्योतिषप्रथम खंडमां शिल्प पछी ज्योतिषनो विषय छ, शिल्पथी पण ज्योतिषनो विषय अधिक व्यापक छे एनुं साहित्य विशाल छे अने शुद्ध पण छे, ए विषयमा अनेक विद्वानोए ग्रन्थो अने निबन्धो लखी आ विषयनी मीमांसा करी छे एटले अमने ए विषयमा बहु लखवा जेवू लागतुं नथी, वली अमे आमां ज्योतिषनो सर्वांग स्पर्श पण कों नथी, केवल मुहूर्त जोवामा उपयोगी थतो वर्षशुद्धि, अयनशुद्धि मासशुद्धि, पक्षशुद्धि, अने दिनशुद्धिनो ज प्रधानपणे विचार को छे जे सर्व मुहूर्तोमा काम आवे एवो मौलिक विषय छे, बाकी विशेष मुहूर्ता मात्र जिनचैत्य संबन्धी ज आपेला छे. खातमुहूर्तथी आरंभीने प्रतिष्ठा पर्यन्तमा जेटलां मुहूर्तो जिनचैत्यने अंगे आवे छे ते सर्व लगशुद्धिनी साथे आपेलां छे.
ज्योतिषने लगता मात्र बेज परिच्छेदो छे-धारणागतिलक्षण अने मुहूर्त लक्षण, धारणागति पूर्वाचार्यरचित संस्कृत धारणागति यंत्रकनो गुजराती अनुवाद मात्र छ ज्यारे मुहूर्त लक्षण अनेक ज्योतिषग्रन्थोना आधारे तैयार करेल छे आमां सहायक बनेला ग्रन्थोमां प्रमुख ग्रन्थोनां नामो आ प्रमाणे छे- आरंभसिद्धिसकार्तिक १, नारचंद्र ज्योतिष सटिप्पणक २, मुहूर्तचिन्तामणिपीयूषधाराटीकासहित ३, वसिष्ठसंहिता ४, नारदसंहिता ५, बृहदैवज्ञरञ्जन ६, ज्योतिनिबन्ध ७, रत्नमालासभाष्या ८, दैवज्ञकामधेनु ९, मुहूर्तमार्तण्ड१०. पाकश्रीसवृत्ति ११, इत्यादि ।
ज्योतिषना विषयने लगती एक वातनुं सूचन करवू अत्र प्रासंगिक गणीये छाये अने ते रवियोग,-राजयोग, कुमारयोग-स्थविर
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