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________________ ३३ प्रस्तावना (निष्काम) भावने ज ज्ञानीओ, 'स्वाशय' कहे छे. थयेल-थता कार्यना निरीक्षणथी प्रतिदिन 'स्वाशय' नी वृद्धि थाय छे, आ प्रमाणे करातुं आ जिनभवन निर्माण शास्त्रमा शुद्ध कहेल्लु छे. सद्गृहस्थोने माटे ए ज भावयज्ञ अने ए ज जन्मनु श्रेष्ठ फल छ, आ चैत्यविधान ज अभ्युदयनी परम्परा द्वारा निश्चितपणे मोक्षनुं बीज बने छे. "देयं तु न साधुभ्य-स्तिष्ठन्ति यथा च ते तथा कार्यम् । अक्षयनीव्या ह्येवं, ज्ञेयमिदं वंशतरकाण्डम् ॥" अर्थ-जिन चैत्य साधुओने न आप, पण तेओ तेमां ठरे एवो प्रबन्ध करवो, आम मूलधन अक्षय थतां ते चैत्य बनावनारना वंशजोने संसार समुद्र तरवार्नु साधन बने छे. " यतनातो न च हिंसा, यस्मादेषैव तन्निवृत्तिफला । तदधिकनिवृत्तिभावाद् , विहितमिदमदुष्टमेवेति ॥" अर्थ-जिनभवन कराववामां जयणा राखतां हिंसा नथी, जे कंइ आमां हिंसा थाय छे ते हिंसानिवृत्ति करनारी छ जे परिमाणमां हिंसा थाय छे तेथी अधिक हिंसाने ते निवृत्त करे छे तेथी जिनचैत्यनुं निर्माण गृहस्थ धर्मिने माटे निर्दोष ज छ, (१७) जिनबिम्बनिर्माणनी धार्मिक विधि उक्त श्रुतधर आचार्य श्रीहरिभद्रसरिजी जिन बिम्ब निर्माणनी विधि आ प्रमाणे लखे छे" जिनभवने तबिम्बं, कारयितव्यं-द्रुतं तु बुद्धिमता। साधिष्ठानं ह्येवं, तद्भवनं वृद्धिमद् भवति ॥" अर्थ-बुद्धिमाने जिनभवनमा स्थापवा माटे जल्दी जिनविम्ब करावq के जेथी ते भवन साधिष्ठान थइ वृद्विकारी थाय. “ जिनबिम्बकारणविधिः, काले पूजापुरस्सरं कर्तुः। विभवोचितमूल्यार्पण-मनघस्य शुभेन भावेन ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001722
Book TitleKalyan Kalika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1987
Total Pages702
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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