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[कल्याण-कलिका-प्रथम-साले वार प्रवृत्ति जाणवी होय त्यांनुं ते दिवसर्नु दिनमान जोवू, तेनी घडी पलो होय तेनुं ३०थी अन्तर काढी तेने अर्ध करवू, जेटली घडी पलो थाय तेटली घडी पलो मेषादिना सूर्यमा सूर्योदय थया बाद अने तुलादिना सूर्यमा सूर्योदय पूर्वे वारनी आदि थाय एटले पहेला दिननो वार समाप्त थइ नवो वार लागे छे. उदाहरण-संवत् २०१०ना आसोज शुदि ५ना दिवसे मारवाड प्रदेश- दिनमान २८-४४ घटी पलोनुं छे, आनुं ३०नी साथे १ घडी १६ पलनु अन्तर थयु, एनुं अर्ध ३८ पलो उक्त दिवसना सूर्योदय अने वार प्रवृत्ति वच्चेनुं अन्तर थयु, एटले के ते दिवसे मूर्य तुला राशिनो होइ सूर्योदय थया पहेला ३८ पले एटले १५ मिनिट १२ सेकंडे ते दिवसनो वार मंगल चालू थयो, अने तेज समयथी मंगलनी होरा चालू थइ. वार प्रवृत्तिने अंगे वसिष्ठ संहिताकार नीचे प्रमाणे कहे छेप्रभाकरस्योद्गमनात् पुरे स्या-द्वारप्रवृत्तिर्दशकन्धरस्य । चरार्धदेशान्तरनाडिकाभि-रूवं तथाधोऽप्यपरत्र तस्मात्॥१२३।
भा०टी०-रावणना नगर लंकामां मूर्यना उदयनी साथे वार प्रवृत्ति थाय छे ज्यारे बीजा स्थानोमां चरान्तर रेखान्तरनी घडी पलोना माने पछी पहेलां वार लागे छे. एज वातनुं ज्योतिःसारमा नीचेना श्लोकमां स्पष्टीकरण छे:--
देशान्तरचरार्धाभ्यां, सौम्ये गोले इनोदयात् । ऊर्ध्वं वारप्रवृत्तिः स्यात्, याम्ये चाधः प्रकीर्तिता ॥१२४॥ .. भाण्टी०-उत्तर गोलमां सायन सूर्य होय त्यारे सूर्योदय पछी देशान्तर चरान्तरना अर्धमाने वार प्रवृत्ति थाय छे, अने दक्षिण गोलमा सूर्य होय त्यारे सूर्योदय पूर्वे तेटला ज समयना अन्तरे वार प्रवृत्ति थाय छे,
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