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पार-लक्षणम्]
वारप्रवृत्ति जाणवानुं प्रयोजनए विषयमां ब्रह्मर्षि वसिष्ठ कहे छेवारप्रवृत्तिविज्ञानं, क्षणवारार्थमेव हि । अखिलेष्वन्यकार्येषु, दिनादिरुदयाद् रवेः ॥ १२५ ॥
भा०टी०-चार प्रवृत्तिनुं ज्ञान क्षणवार (कालहोराओ) ने माटे ज उपयोगी छे, बाकी बीजां सर्व वार प्रतिबद्ध कामोमां-अर्धयाम, कुलिक, उपकुलिक, कंटक, राजयोग, कुमारयोग, स्थविर योगादिमां अने वारविहित कार्यारंभमां वारनी आदि सूर्योदयथी ज मानवानी छे.
वार भोग संबन्धी एक नवी परम्परालल्लाचार्य, चण्डेश्वर आदि संक्रान्तिपरक वार भोग संवन्धी एक विशेषता जणावे चे, चण्डेश्वर कहे छे
मीनालिमेषकलशेषु दिनान्तमात्र, गोकर्ककार्मुकघटेष्वपि चार्धरात्रम् । स्त्रीयुग्मसिंहमकरेषु निशावसानं,
वारस्य भोगमिह यन्मुनयो वदन्ति ॥ १२६ ॥ भाल्टी०- वृश्चिक कुंभ मीन मेषना मूर्यमां सांज सुधी, वृषभ कर्क तुल धनुना सूर्यमां अर्धरात्रि पर्यन्त, मिथुन सिंह कन्या मकरना सूर्यमां रात्रिना अन्त सुधी दिनवारनो भोग होय छे एम मुनिओ कहे छे.
आ वार भोगना निवेदननो अर्थ अर्वाचीन ग्रन्थकारोए प्रथम वारनी समाप्ति अने नवा वारना प्रवेशना रूपमां लगाडी नीचे प्रमाणे सिद्धान्त प्रतिपादन कर्यो छे
मृगस्त्रीसिंहयुग्मेश्वरस्तेऽजालिझषे निपे। तुलागोधन्विकर्केषु, निशार्धे वारसंक्रमः॥ १२७ ॥
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