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मुहूर्त-लक्षणम् ]
३७३ __ उपर प्रमाणे मुंजादित्य निबन्धना श्लोकोनी व्याख्या करता शेष स्थिति शिल्पशास्त्रोक्त नागवास्तुना भ्रमणनी साथे बरोबर मली रहे छे. “विहाय सृष्टिं" नो संबन्ध "गणयेद् " नी साथे न जोडतां “सर्पति" क्रियापदनी साथे जोडी अर्वाचीन ज्योतिषिओए शेषनुं विलोम भ्रमण प्रचलित कयु के जे आजकाल विशेष प्रचलित छे, आ नवी मान्यता प्रमाणे शेष स्थिति नीचे प्रमाणे मनाय छे, चिन्तामणौ -
देवालये गेहविधौ जलाशये, राहोर्मुख शंभुदिशो विलोमतः मीनार्क सिंहार्क मृगार्कतस्त्रिभे,
खाते मुखात्पृष्ठविदिक शुभा भवेत्॥ ४० ॥ भा०टी०-देवालय, गृह अने जलाशयना खात मुहूर्तमां अनुक्रमे मीनादि, सिंहादि तथा मकरादि ३-३ राशिना सूर्यमां शेषनुं मुख ईशानमां होय छे अने संहार क्रमथी सरकता शेषनुं ते पछीनी ३-३ राशिना सूर्यमां वायव्यकोणमा, ते वादनी ३-३ राशिना मर्यमा नैत कोणमां अने छेल्ली धनुआदि, वृषादि अने तुलादि ३-३ राशिना सूर्यमां शेषनुं मुख आग्नेय कोणमा होय छे, शेषना मुखनी, पेटनी अने पुच्छनी विदिशा छोडीने तेना मुख पाछळनी विदिशा खातमां शुभ होय छे, मुख ईशानमा झोय त्यारे आग्नेयी, वायव्यमां होय त्यारे ईशान, नैऋतमा होय त्यारे वायव्य अने आग्नेय कोणमा होय त्यारे नैऋत कोण खात माटे शुभ जाणवो.
उक्त शेष स्थिति संवन्धी बंने मान्यतानुसारी चक्रो नीचे प्रमाणे छे
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